गीत/नवगीत

चेहरे पे बारिश की बूंदें …

चेहरे पे बारिश की बूंदें यूं ढलके, जैसे की शबनम की बूंदे गुलों पर।
होठों पे यूं कर रही है शरारत, किरणें जो पहली गिरे कोपलों पर॥

भीगा सा आंचल यूं लिपटा बदन से, जैसे लता कोई बल खा के झूमे।
बल खा के इतरा के झूमें है झुमके, मदहोशियों में कपोलों को चूमें॥
यूं लट उलझती है, नागिन सी लगती है लहराती बल खाती कोमल लबों पर….

गिरकर बदन पर,जलती हैं बूंदे कैसी तपिश है ये कैसी अग्न है।
तेरी जवानी जलाती है जल भी, फिर भी मिलन कि सभी को लगन है॥
प्यासा खुद सावन हैं, आशा हर एक मन है
अभिलाषा उडने लगी बादलों पर…..
चेहरे पे बारिश की बूंदें यूं ढलके, जैसे की शबनम की बूंदे गुलों पर…

है इतनी गुजारिश, रुकना मत ऐ बारिश
कुछ और जलने दो, अरमां मचलने दो।
चल जो रहा है ये पल यूं ही चलने दो
इस तन की ज्वाला से, पानी को जलने दो।
अरमां पिघलने दो, चाहत में जलने दो, हर ख्वाब पलने दो, हुस्न के शोलों पर…
चेहरे पे बारिश की बूंदें यूं ढलके, जैसे की शबनम की बूंदे गुलों पर…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

One thought on “चेहरे पे बारिश की बूंदें …

  • विजय कुमार सिंघल

    बढिया रचना !

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