आत्मकथा

आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 52)

अनिता की पुस्तक का कार्य

लगभग 28 साल बाद मिली अपनी पत्र-मित्र श्रीमती अनिता अग्रवाल के बारे में मैं ऊपर लिख चुका हूँ। कभी-कभी हम नेट पर चैटिंग किया करते थे। एक दिन बात करते हुए उसने बताया कि जुलाई 2011 में उसके जन्मदिन की 50वीं वर्षगाँठ आ रही है और इस अवसर पर वह अपनी कविताओं का एक संकलन छपवाना चाहती है। साथ में उसने जो पेंटिंग बनायीं हैं, उनको भी उसी किताब में छपवाना चाहती है। यह तो मुझे पता था अनिता कविता लिखती है, लेकिन यह नहीं पता था कि वह पेंटिंग भी करती है। वास्तव में वह आॅलराउंडर जैसी है- कविता, पेंटिंग, डांस, गायन, खेलकूद आदि। मैंने कहा कि यह आइडिया बहुत अच्छा है। किताब जरूर निकालो।

पहले उसका विचार किसी प्रकाशक के माध्यम से छपवाने का था। उसके पूछने पर मैंने बताया कि सामान्यतया प्रकाशक ऐसी किताबें नहीं छापते, क्योंकि ये बिकती कम हैं। इसलिए अपने ही खर्च पर छपवानी होगी। उसने खर्च का अनुमान पूछा, तो मैंने कहा कि मुझे पता नहीं है, किसी प्रिंटर से बात करो। तब उसके सुपुत्र वरुण ने एक प्रिंटर से चर्चा की। बाइंडिंग आदि पर भी चर्चा हुई।

मैंने कहा कि उस पुस्तक की पांडुलिपि मैं अपने कम्प्यूटर पर तैयार कर दूँगा। इस पर वह बहुत प्रसन्न हुई। मैंने उससे कहा कि अपनी कवितायें भेज दो। मैं यहाँ टाइप कर लूँगा। करीब 90-100 कविताएँ थीं, जिनमें से लगभग 60 कवितायें मुझे छापने लायक छाँटनी थीं। लेकिन मुझे कवितायें टाइप नहीं करनी पड़ीं, क्योंकि अधिकांश कवितायें उसने नेट पर डाल रखी थीं, जो मंगल फाॅण्ट में थीं। मैं उस किताब को कृतिदेव फाॅण्ट में बनाना चाहता था, जो देखने में अधिक अच्छा लगता है। मंगल फाॅण्ट से कृतिदेव में बदलने के प्रोग्राम उपलब्ध हैं। इसलिए मैं उनका फाॅण्ट बदल लेता, लेकिन अनिता के पुत्र वरुण ने खुद ही फाॅण्ट बदलकर कवितायें मुझे भेज दीं। इसी तरह अनिता ने अपने बनाये चित्रों (पेंटिंगों) को भी स्कैन कर रखा था। वे फाइलें भी उसने मुझे भेज दीं। मैंने कविताओं और पेंटिंगों को पेजमेकर में अच्छी तरह लगाया और किताब की पांडुलिपि तैयार कर दी। अब कोई भी प्रिंटर उसे छाप सकता था। इसमें मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी, लेकिन प्रसन्नता भी थी कि एक अच्छे कार्य में सहयोग कर रहा हूँ।

किसी तरह उस फाइल को मैंने नेट द्वारा अनिता को भेजा। उसमें छोटी-मोटी कमियाँ रह गयी थीं। अनिता ने मुझसे कहा कि मुझे पेजमेकर पर काम करना सिखा दो, मैं यहीं ठीक कर लूँगी। मैंने उसको अपनी एक किताब भेजी थी, जिसमें पेजमेकर पर एक पूरा भाग था। मैंने उससे कहा कि उसके पहले दो अध्याय पढ़ डालो। फिर मैं बताऊँगा। उसने ऐसा किया, लेकिन समस्या हल नहीं हुई। फिर मैंने चैट के साथ-साथ उसे बताया कि क्या करना है। अनिता प्रतिभाशाली तो है ही, पर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब उसने मेरे बताने पर सारी क्रियायें सही-सही कर लीं और किताब को सुधारकर एकदम तैयार कर दिया। अब मेरा कार्य समाप्त हो गया था। मैं इस कार्य को अपनी दक्षिण भारतीय भ्रमण यात्रा से पहले ही समाप्त करना चाहता था। सौभाग्य से वैसा ही हुआ।

जुलाई में अनिता ने उसे एक प्रिंटर पर इलाहाबाद में ही छपवाया। उसका औपचारिक विमोचन भी उसके जन्म दिन पर 20 जुलाई को किसी विद्वान् के कर कमलों से कराया गया। उसके कुछ दिन बाद ही उस पुस्तक की एक प्रति अनिता ने मुझे कोरियर द्वारा भेज दी। किताब वास्तव में अच्छी छपी है। पाकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। यह बताना जरूरी है कि इसके पीछे चि. वरुण की मेहनत अधिक थी। मैंने तो केवल कम्प्यूटर पर बैठे-बैठे कार्य किया था, परन्तु उसने बहुत भाग-दौड़ की थी।

दक्षिण भारत भ्रमण

मैसूर में दीपांक का प्रशिक्षण समाप्त होने के बाद और किसी जगह नियुक्ति मिलने से पहले उसे जून 2011 महीने में लगभग 1 माह का अवकाश मिल रहा था। हमने इस अवकाश का पूरा लाभ उठाना तय किया, क्योंकि मोना की भी छुट्टियाँ थीं और मेरी एलटीसी की सुविधा बकाया थी। हमने इस सुविधा का लाभ लेते हुए मारीशस भ्रमण करना तय किया। बैंकों में प्रत्येक 4 वर्ष की अवधि में एक बार भारत में स्थित किसी भी स्थान का भ्रमण करने की सुविधा उपलब्ध है। बैंक केवल सीधी हवाई यात्राओं का किराया देता है, लेकिनयात्रा कम्पनियाँ प्रायः उतने ही किराये में विदेश का भ्रमण भी करा देती हैं। हम ऐसे ही पैकेज पर 4 वर्ष पहले श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर का भ्रमण कर चुके थे, जिसकी चर्चा मैं अपनी आत्मकथा में कर चुका हूँ। हमारे पासपोर्ट पहले से ही बने हुए थे। इसलिए उनकी चिन्ता नहीं थी।

पहले हमने दिल्ली के एक ट्रैवल एजेंट से बात की, तो वह लखनऊ से त्रिवेन्द्रम तक के किराये में मारीशस का पैकेज देने को तैयार हो गया, लेकिन कुछ धन लगभग 5 हजार प्रति व्यक्ति हमें भी देना था। पैकेज में हवाईयात्राओं के अलावा होटलों में ठहरना, घूमना, नाश्ता और रात्रि भोजन शामिल था। फिर हमने लखनऊ में एक ट्रेवल एजेंसी से बात की, तो वे त्रिवेन्द्रम तक के किराये में ही मारीशस का पूरा पैकेज देने को राजी हो गये, यानी हमें अपने पास से कुछ नहीं देना था। यह तय होते ही हमने अपने पासपोर्ट वीजा लेने के लिए उनके पास जमा कर दिये और हवाई यात्रा की टिकटें बनवा लीं। तभी उन्होंने बताया कि मोना के पासपोर्ट की अवधि 2-3 माह बाद ही समाप्त हो रही है, इसलिए उसे वीजा नही मिल सकता। पासपोर्ट कम से कम 6 माह तक वैध रहना आवश्यक है। हमें पहले इस नियम की जानकारी नहीं थी, इसलिए इस पर ध्यान नहीं गया।

हम मोना को छोड़कर कहीं घूमने जाना नहीं चाहते थे, इसलिए हमने विदेश यात्रा के बजाय देश में ही किसी जगह घूमने जाना तय किया। हम दक्षिण भारत के बंगलौर, मैसूर, चेन्नई, त्रिवेन्द्रम, कोवलम, कन्याकुमारी आदि स्थान पहले देख चुके थे। परन्तु केरल अधिक नहीं देखा था। इसलिए इस बार हमने केरल की पूरी यात्रा करना तय किया। उसी ट्रैवल एजेंसी से हमने केरल के कोच्चि, मुन्नार, कोडाईकनाल, अलेप्पी बैक वाटर, कोवलम के साथ ही लक्षद्वीप की यात्रा प्रोग्राम बनवा लिया। पूरे 10 दिन का अच्छा प्रोग्राम था। तब तक हमने केवल त्रिवेन्द्रम देखा था, जब हम सिंगापुर गये थे। लेकिन बैंक से त्रिवेन्द्रम का किराया लेना था, इसलिए एक बार फिर वहाँ जाना जरूरी था।

निर्धारित दिन को हम दक्षिण भारत की यात्रा पर निकल पड़े। हमारी यह यात्रा बहुत आनन्ददायक रही।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

7 thoughts on “आत्मकथा : एक नज़र पीछे की ओर (कड़ी 52)

  • विजय कुमार सिंघल

    प्रणाम मान्यवर ! आभार !

  • मनमोहन कुमार आर्य

    आज की क़िस्त पढ़ी। क़िस्त रुचिकर होने के साथ ज्ञान व अनुभव देने वाली है। हार्दिक धन्यवाद एवं नमस्ते।

    • विजय कुमार सिंघल

      प्रणाम, मान्यवर ! हार्दिक आभार !!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , आज की किश्त भी बहुत अच्छी लगी .

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार भाईसाहब !

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    उम्दा कार्य किसी की निस्वार्थ मदद करना जिसमें आप सक्षम हैं
    अच्छा लगता है

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार बहिन जी !

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