मुक्तक/दोहा

जय हिन्द जय हिन्दी

चले गये अंग्रेज पर छोड़ गये अपनी पहचान
अंग्रेज़ी बोलने में कुछ लोग यहाँ समझते शान
अंग्रेज़ी को यूं आगे बढ़ता देख हमारी हिन्दी
अपने ही देश में बेचारी सहती है अपनी अपमान
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माँ की गोद में सीखा जो वो मातृ भाषा हिन्दी है
सूर्य सा चमकने वालीये भारत माँ की बिंदी है
अंग्रेजी बना है काल इसकी इसे निगल जायेगा
हिन्दी को अपनाकर बचा लो अभी ये जिंदी है
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हिन्दी को शान बनाकर अपनी सभ्यता बचाना है
अंग्रेजों को तो भगा दिया अब अंग्रेज़ी भगाना है
हम हिंदुस्तानी मिलकर हिन्दी में क्रांति लायेंगे
पूरी दुनिया को सिखाकर इसे अंतर्राष्ट्रीय बनाना है ।
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जय हिंद ! जय हिन्दी !!

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।