हास्य व्यंग्य

हास्य गीतिका

वो सूखी लीद तुम अपने तबेले से हटा लेना।
जहाँतक हो सके सब गंद चादर की छुड़ा लेना।

तुम्हारे घर मुझे आना तभी यह बात बोली है,
खजेले कुत्ते को अपने दुआरे से भगा लेना।

निहायत झक्क एक दुर्दांत दिखती रोज थोबड़ पे,
गुजारिश है मेरी तुमसे जरा दाढ़ी बना लेना।

न बदबू आए कमरे से, न झलके जाल मकड़ी के,
मिले मौका अगर तो याद से झाड़ू लगा लेना।

नहीं मेहमान को बासी खिलाते जान लो घोंचू
नये चावल तुम्हें भिजवाए हैं उनको पका लेना।

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन