राजनीति

दादरी कांड पर कब तक चलता रहेगा सेकुलर विलाप ?

विगत सितबर माह में दादरी के निकट बिसहाड़ा गांव में एक मुस्लिम की अफवाह के चलते पीटकर की गयी निर्मम हत्या की घटना निश्चय ही बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व निंदनीय है। एक प्रकार से आधुनिक लोकतंत्र व सभ्य समाज के लिए कलंक की घटना है। बहुसंख्यंक हिंदू समाज के इतिहास की संभवतः यह पहली घटना याद आ रही है कि जब लाउडस्पीकर से इस प्रकार की वारदात को अंजाम दिया गया है। प्रतीत हो रहा है कि यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है। यह साजिश तब और भी अधिक गहरी हो जाती है जब ऐसी घटनाओं का उपयोग तथाकथित सेकुलर दल अपने- अपने हिसाब से अपनी राजनीति को चमकाने में लग जाते हैं। अब विगत लगभग 15 दिन से भी अधिक समय बीत गया है लेकिन दादरी कांड पर बयानबाजी और नेताओं का बिसहाड़ा पर्यटन लगतार जारी है।

इस पूरे घटनाक्रम के अंतर्गत सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अब तक जो भी कार्यवाही हुई है व नेताओं तथा प्रशासन ने जिस प्रकार से कार्यवाही को अंजाम दिया है वह पूरी तरह से एकपक्षीय तथा आम जनमानस को भड़काने वाली है। सभी सेकृलर दल छाती पीट- पीटकर रो रहे हैं तथा मुस्लिमों के एक बार फिर सबसे बड़े रहनुमा बनने का दिखावा कर रहे हैें। दादरी कांड पर चाहे केजरीवाल हो या फिर ओबैसी , राहुल गांधी हों या फिर बसपा के नसीमुददीन सिददीकि चाहे फिर भाजपा के नेता गण ही क्यों न हो सभी ने संविधान के खिलाफ जाने का मन बना लिया है फिर वह हिंदू संगठन ही क्यों न हों।

सबसे बडा आपत्तिजनक काम तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल कर रहे हैं । दादरी का बिसहाडा गांव तो दिल्ली की सीमापर नहीं उप्र से लगता है फिर भी उन्हंे तो अपनी राजनीति चमकानी है इसलिए वह अपने आप को सेकु​लरों का सबसे बड़ा खेवनहार बताने के लिए दादरी पहुंच गये वह भी तब जब दिल्ली में डेंगू से लोग मर रहे हैं। दिल्ली की जनता डेंगू सहित कई अन्य समस्याओं से परेशान हो रही है लेकिन उनके पास उन लोगों के यहां जाने के लिए समय नहीं हैं। अभी तक दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने डेंगू से मौत के काल मे समा चुके लोगों के परिवारें को ढाढस बंधने उनके धर नहीं गये नहीं अस्पतालांे के हालात का जायजा ले रहे हैं जबकि दिल्ली के अधिकांश अस्पताल तो राज्य सरकार के आधीन हैं। इतना ही नहीं अपनी राजनीति को चमकाने के लिए केजरीवाल ने रेडियो संदेश भी जारी किया जिसकी भाषाशैली बहुत ही अभद्र और असंवेदनशील है। केजरीवाल केवल खुद को बड़ा ईमानदार और सच्चा मानते हैं तथा बाकी सब उनकी नजर में चोर हैं। दादरी कांड पर उनके कदम राजनैतिक स्वार्थ की परकाष्ठा है । रेडियो संदेश मंे भी उन्होनें वर्ग विशेष को खुश करने के लिए बहुसंख्याक हिंदू समाज को अपमानित ही किया है। आखिरकार दिल्ली में वह जीते भी हैं केवल मुस्लिम वोटों के बल पर ।

इस पूरे प्रकरण पर तो सबसे गजब का खेल उप्र में चल रहा है। अपने आप को मुस्लिमों का रहनुमा बनाने चक्कर में घटना की जांच का अंतिम परिणाम आये बगैर ही प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पीड़ित परिवार को खुश करने के लिए ही नहीं अपितु पूरे मुस्लिम सामज का वोटबैंक सुरक्षित रखने के लिए अखलाक के परिवार को 45 लाख रूपये का मुआवजा देने का ऐलान किया और कहाकि पूरे मामले की गंभीरता से जाच होगी तथा दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जायेगा। समाजवादी सरकार के मंत्री आजम खां तो उससे भी अगे जाकर बयानबाजी कर रहे हैं तथा पूरे मामले को यूएन में ले जाने की धमकी दे रहे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आजम खां को नसीहत भी दी है। अभी फिलहाल आजम अपने बयान और मामले को यूएन मंे ले जाने के लिए अडिग नजर आ रहे हैं। उनकी नजर मंे देश के मुसलमान असुरक्षित हो गये हैं। भाजपा व संघ परिवार भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का प्रयास कर रहे हैं। यहां पर आजम खां को यह बताने व याद दिलाने की महती आवश्यकता आ गयी है कि भारत आज से पंाच हजार वर्ष पूर्व से भी लेकर अब तक हिंदू राष्ट्र ही रहा है तथा और रहेगा । यह तो बहुसंख्यक हिंदू समाज की सहनशीलता व उदारता है कि आज देश मं आजम जैसे देशद्रोही लोग मंत्री बने बैठे हैं। यदि उन्हें भारतीय संस्कृति, सभ्यता और यहां के संविधान पर कतई विश्वास व भरोसा नहीं रह गया है तो उन्हें यूएन में जाने से पहले स्वयं इस्तीफा दे देना चाहिए या फिर सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव में जरा सा भी साहस व देशभक्ति का भाव बचा है तो आजम खां को अब तक मंत्रिमंडल संे बर्खास्त कर देना चाहिए था।

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा अपितु वोटबैंक के चक्कर में संविधान व देश की इज्जत के साथ समझौता किया जा रहा है। अभी गणेशोत्सव के दौरान आधा दर्जन से अधिक शहरों में गणेश प्रतिमाओं पर हमले किये गये तथा किसी न किसी बहाने गणेश प्रतिमाओं को विसर्जन करने से रोका गया तब तथाकथित सेकुलर विलापी कहां चले गये थे। दादरी कांड पर सेकुलर विलाप इस सीमा तक बढ़ गयाहे कि देश के राष्टपति भी अपने आप को नहीं राक सके और उन्हें भी बयान देना पड़ गया है। वहीं स्थानीय स्तर पर प्रशासन सेकुलर नेताओं को तो बिसहाड़ा गांव जाने की इजाजत भी दे रहा है लेकिन बहुसंख्यक हिंदू समाज के नेताओं को नहंीं जाने दे रहा आखिर क्यों ? क्या यहीं निष्पक्ष लोकतंत्र व धर्मनिरपेक्षता है। प्रशासन ने भाजपा व बसपा के एक नेता पर तो एफआईआर कर दी लेकिन राहुल केजरीवाल और ओबैसी को क्यों छोड़ दिया गया ?

एक महत्वपूर्ण बात यह है कि दादरी कांड के बहाने पीएम मोदी की सरकार को घेरने की कोशिश की जा रही है। जबकि कानून और व्यवस्था का मामला राज्य सरकार के आधीन आता है। वहीं टी वी चैनलों में तो केवल एक बात पर ही बहस होती है कि आखिर मोदी मौन क्यों हैं?तथाकथित सेकुलर दल और उनका टी वी मीडिया विगत 12 वर्षों से नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों का आरोपी बताकर उनके खिलाफ झूठा प्रचार करता रहा ठीक उसी प्रकार से दादरी कांड पर भी वैसा ही करने का प्रयास किया जा रहा है। इस पूरे प्रकरण में राज्य सरकार व स्थानीय खुफिया एजेंसियों की नाकामी की भी गहराइ्र से जांच होनी ही चाहिये। तभी दूध का दूध और पानी हो सकेगा। अगर प्रदेश व देश में इसी प्रकार से बहुसंख्यक समाज को अपमानित करने वाली राजनीति होती रही तो पता नहीं भविष्य मेें क्या होगा। दूसरे धर्म को सम्मान देने का ठेका केवल हिंदू समाज ने ही नहीं ले रखा है। मुस्लिम समाज का भी कर्तव्य है कि वह दूसरे धर्मोे का सम्मान करें।यही बात देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों पर भी लागू होती है।

— मृत्युंजय दीक्षित