सामाजिक

बदल रहे हैं विवाह के मायने

शादियों का मौसम है ,हर तरफ ढोल नगाड़े,शहनाइयों की धुन है पर एक बात जो  सबसे अहम् है वो यह है कि अब शादी कोई सामाजिक परंपरा नहीं रही बल्कि एक साथी की तलाश बन गई है ,जो  भले ही हर क्षेत्र में परफेक्ट न हो,लेकिन खुली सोच जरूर रखता हो | शादी न सिर्फ सामाजिक प्रथा है ,बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी एक जरुरत है ,लेकिन इस बदलते दौर में जहाँ सबकुछ बड़ी तेजी से बदल रहा है तो उसका सबसे ज्यादा असर हमारे संबंधों पर ही पड़ा है और विवाह भी इससे अछूता नही है | अब शादी न सात जन्मों का साथ है,और न ही दो अंजान दिलों का मिलन | बल्कि आज विवाह दो अलग-अलग लोग किस तरह से और कब तक ख़ुशी-ख़ुशी साथ रह सकते हैं, इस बात पर टिकी है | आज विवाह जिन्दगी की जरुरत या निर्णय नहीं रह गया है बल्कि विवाह से कहीं ज्यादा जरुरी कैरियर और आर्थिक आत्मनिर्भरता हो गई है | पहले जब घर में किसी की शादी पड़ती थी करीब साल भर पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती थी , घर के मुखिया के ऊपर ढेर सारी जिम्मेदारी लाद दी जाती थी जिसे वह बड़े ही चाव से हंसी-ख़ुशी स्वीकार कर अपने बड़े होने का अभिमान महसूस करता था पर अब वो बात नहीं रही ,अब जिसकी शादी होती है वो अपनी सारी जिम्मेदारी खुद उठाता है एवं सारे निर्णय खुद लेता है और सब हो जाने के बाद घर के लोगों को इसकी सूचना देता है | विवाह में अब स्पेस , प्राइवेसी ,सहूलियत जैसे शब्द घर करते जा रहे हैं | विवाह आज आपसी अंडरस्टैंडिंग पर टिका हुआ है,जैसे ही कुछ मन-मुताबिक नहीं हुआ अलगाव के रास्ते खुले हैं | परिवार और समाज अब दोनों ही शादी के लिए कोई मायने नहीं रखता, बस पति -पत्नी ही साथ रहें वो भी इस शर्त पर कि दोनों में से कोई एक-दूसरे की स्वतंत्रता के आड़े नहीं आयेगा | यहाँ पति-पत्नी की सोच इतनी प्रैक्टिकल हो जाती है कि भावनाओं की कोई जगह ही नहीं बची |

अब विवाह के पूरे मायने ही बदल गए हैं,जहाँ पहले दो बेहतर इन्सान और परिवार एक बेहतर रिश्ते के जरिए बेहतर जिन्दगी की कल्पना को ही विवाह की सार्थकता मानते थे,अपने साथी के सुख-दुःख में अपना सुख -दुःख तलाशते थे,वहीँ अब सब कुछ बदल गया है या यूँ कहें की उसका स्वरुप ही अलग हो गया है | आज लोग पैसे और स्टेटस में सुख खोजने लगे है और इसकी खातिर वे किसी भी चुनौतियों को स्वीकारने में पीछे नहीं हटते | आज सहनशीलता और त्याग जैसे शब्दों को बेवकूफी समझा जाने लगा है ,जिसकी वजह से आय दिन रिश्ते टूट रहे हैं | तलाक के ट्रेंड में जो आज सबसे बड़ा बदलाव आया है वो यह है कि अब महिलाएं ज्यादा केसेस फ़ाइल् करती हैं,जो पहले न के बराबर था | हालाँकि इस बदलाव से जागरूकता तो जरूर बढ़ी ,पर इन्हीं कानूनों का अब दुरूपयोग भी काफी बढ़ गया | अब जैसे ही परिवार का कोई सदस्य उन्हें टोकता है या पसंद नहीं आता तो उन्हें दहेज़ विरोधी कानून में फंसाने की धमकी दी जाती है | पति की भी कमोवेश वही स्थिति है वह भी हमेशा डरा-डरा रहता है इसका नतीजा यह होता है कि जिस ख़ुशी को वह पत्नी से पाना चाहता है अगर वह नहीं मिलता है तो वह दूसरे जगह अपने सुख को तलाशता है | आज जरुरत है शादी जैसे विषय पर गंभीरता से सोचने का एवं इस रस्म को सम्मान की नजरिये से देखने का तभी कुछ बदलाव संभव होगा नहीं तो नित शादियाँ टूटती रहेंगी और परिवार तथा बच्चे इसका भुगतान करते रहेंगे |
                                                                                  संगीता सिंह ”भावना”
                                                            सह- संपादक ”करुणावती साहित्य धारा”

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित