ग़ज़ल
कौन उलझे सवाल कौन करे,
चलो छोड़ो बवाल कौन करे
गुज़र गई जैसी भी गुज़री,
ज़िंदगी का मलाल कौन करे
मंज़िल सामने खड़ी है पर,
कौन उठे कमाल कौन करे
हिज्र ही है नसीब जब अपना,
ख्वाहिश-ए-विसाल कौन करे
बात होती तो रास्ता मिलता,
गुफ्तगू बहरहाल कौन करे
आसमां छू सकता हूँ लेकिन,
यहां कायम मिसाल कौन करे
दुश्मनों से ही नहीं फुर्सत,
दोस्तों का ख्याल कौन करे
— भरत मल्होत्रा
अदभुत भाव अद्भुत सन्देश परोसती रचना आदरणीय, वाह