गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कैसे समझें कब निकलेगी जान कहाँ।
पल पल मरने वाले को ये भान कहाँ।

मानवता से रिश्ता जोड़ो दुनिया में
साथ निभाते हैं यारो भगवान कहाँ

पाप धरा पर फ़ैल रहा है ज़ोरों  से
गीता रामायण से निकला ज्ञान कहाँ ।

आजादी की खातिर जान लुटाये जो
वीर शहीदों की बचती है शान कहाँ ।

लेकर घूम रहा रिश्तों को काँधे पर
दिल से गायब तेरे हैं बलिदान कहाँ ।

अफवाहों पर रंग देते हो धरती को
तुमसे बढ़कर दुनिया में शैतान कहाँ ।

जलता है रावण का पुतला वर्षों से
मन का रावण जलना है आसान कहाँ

— धर्म पाण्डेय

One thought on “ग़ज़ल

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर गज़ल

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