कविता

मानवता हो गयी मरणासन्न

दिल्ली में हुए शर्मनाक कांड पर दिल में उत्पन्न हुए आक्रोश से निकली कुछ पंक्तियाँ :-

मानवता हो गई मरणासन्न,
लोट रही अंगारों पे,
घूम रहे हैं भूखे कुत्ते,
गलियों में, बाज़ारों में,
मेरे देश में एक तरफ,
दुर्गा को पूजा जाता है,
और यहीं पर औरत की,
इज्जत को लूटा जाता है,
जहां भी देखो वहीं भेड़िए,
घात लगाए बैठे हैं,
छोटी-छोटी बच्चियों पर भी,
नज़र गड़ाए बैठे हैं,
कहीं सहारा नेताओं का,
कहीं सहारा वर्दी का,
मर्दों वाला काम नहीं है,
काम है ये नामर्दी का,
कोई भी गैरतमंद जिसने,
माँ का दूध पिया होगा,
ख्वाब में भी ना उसने ऐसा,
गंदा काम किया होगा,
जब तक ये बलात्कारी,
अपने देश में जिंदा हैं,
अपनी भारत माता से हम,
सब के सब शर्मिंदा हैं,
इनके खून से लाल करेंगे,
रस्तों और गलियारों को,
चुन-चुनकर मारेंगे इन सब,
गीदड़ों और सियारों को,
जिसने उसको जन्म दिया है,
वो भी तो इक नारी है,
फिर औरत पर आँख बिगाड़े,
कैसा व्यभिचारी है,
लेकिन अब ना और सहेंगे,
इन ज़ालिम हैवानों को,
नंगा करके टांगेंगे हम,
चौक पे इन शैतानों को,

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- rajivmalhotra73@gmail.com