कहानी

एक भूल

कभी किसी को छोटा समझ कर उसकी अवहेलना करना कितनी बड़ी भूल हो सकती है इसका एहसास मुझे मेरे साथ हुई एक घटना ने दिलाया।

एक सुबह मैं अपने ऑफिस के लिये निकला मुझे देर हो गई थी।तेज गति से बढ़ते हुए कदम अचानक एक करुण आवाज़ सुनकर ठिठक गए।मैंने मुड़कर देखा एक गन्दे कपड़े में लिपटा हुआ भिखारी लगभग रुआंसे चेहरे से मेरे आगे हाथ फैलाये खड़ा था।”साहब मैंने दो दिन से कुछ नहीं खाया है।भूख से मेरा दम निकला जा रहा है,कुछ रूपये दे दो तो मैं खाना खा लूँ”।भिखारी मेरे पैरों में गिर कर बोला।
मैंने उसे झिड़क दिया”दूर रहो मुझसे तुम्हारे गन्दे हाथ मेरे कपड़े गन्दे कर देंगे,मुझे ऑफिस जाना है और ये तुम लोगों का रोज का काम है।मेहनत करो और कमाओ”।भिखारी मेरे बहुत पास आ गया था मुझे गुस्सा आ गया मैंने उसका हाथ पकड़ कर दूर धक्का दे दिया वो लड़खड़ाता हुआ सड़क पर गिर गया।मगर मुझे एहसास हो गया था उसका बदन तीव्र बुखार से तप रहा है तभी तो उसकी जुबान उसका साथ नहीं दे रही थी फिर भी मैं पत्थर दिल उसे ऐसी हालत में छोड़ कर चल पड़ा ऑफिस के लिए।सारा दिन उसके साथ किये व्यवहार को मैं सोचता रहा।शाम को उसी रास्ते से लौटा मगर वो भिखारी मुझे नहीं दिखाई दिया।बाद में पता चला वो बुखार और भूख के कारण दुनिया से विदा हो गया है।”अच्छा है मर गया ऐसी ज़िन्दगी से मुक्ति तो मिल गई”मैं मन ही मन बड़बड़ाया।

कुछ दिन गुजर गए मैं उस भिखारी को भूल चुका था।एक शाम मैं टहलने निकला। सड़क पार कर ही रहा था कि सामने से आती हुई एक गाड़ी दिखाई दी मैं खुद को बचाने के लिए पीछे लौटा मगर तब तक देर हो चुकी थी मेरा दायां पैर गाड़ी की चपेट में आ गया था।मैं गिर पड़ा दर्द से चिल्लाने लगा मदद की गुहार लगा रहा था।आस-पास से गुजरती तेज गाड़ियों की गति कम नहीं हुई।कोई भी नहीं आया मेरी मदद को लगा की अब मेरी ये आखिरी शाम है।और मैं बेहोश होगया।

जब आँख खुली तो खुद को अस्पताल के बेड पर पाया।सामने डॉक्टर साहब खड़े थे।मैंने पूछा मुझे यहाँ कौन लाया है?डॉक्टर ने कहा एक भिखारी तुम्हें यहाँ लेकर आया और तुम्हें खून भी दिया है तुम्हारा खून अधिक बह गया था अगर आने में थोड़ी देर और हो जाती तो तुम्हारा पैर काटना पड़ता।तभी मुझे उस भिखारी के साथ किये गए दुर्व्यवहार का स्मरण हो आया मेरी आँखों से आंसू बहने लगे।काश मैं उसकी मदद करता तो शायद आज वो भिखारी भी जिन्दा होता।अपनी करनी पर पछतावा हो रहा था।आज मेरी नसों में एक भिखारी का रक्त बह रहा था जिसने मेरी जान बचाई जिसे मैंने गन्दा और तुच्छ प्राणी कहा था।भविष्य में असहाय लोगों की मदद करने का दृढ़ सन्कल्प करते हुए मैंने अपनी आँखे बन्द कर लीं ।अभी भी उस भिखारी का दयनीय चेहरा मेरे चारों ओर मंडरा रहा था।

वैभव दुबे

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।