कहानी

सोने की दाल

सुगंधा यूँ तो एक मितभाषी व्यवहारिक महिला है आडम्बर नहीं पसंद आते आजकल अपनी पड़ोसन से बहुत परेशान जब भी उसकी बेटी घर के बाहर निकलती तो कभी हाथ मुँह नहीं धुला रहता हाथ मुँह पर अक्सर दाल चिपकी रहती अक्सर कह भी देती अपनी पड़ोसन से, नेहा बेटी का हाथ मुँह नहीं धुलाया? नेहा दाँत निकालकर हँसते हुए कहती अरे भाभी! दाल खाके आई है इसे बहुत पसंद है और मेरे ये भी कहते हैं की लोगों को हमारी हैसियत के बारे में पता रहना चाहिए आखिर हम रोज दाल पकाते हैं तो इसलिए भी नहीं धोती ,सुगंधा को नेहा की बातें बड़ी अजीब लगीं झुंझलाकर अंदर चली आई सोचती रही बड़ी अजीब औरत है हर बात का गुणगान करती रहती है ।रोज रोज कभी कहेगी आज तो हमने प्याज का सलाद बनाया तो कभी तूर दाल का ढिढोरा पीटती रहेगी हद हो गयी कैसे लोग हो गए हैं अपनी निजी ज़िन्दगी को सार्वजनिक करने में जरा नहीं हिचकिचाते फिर वो तूर दाल प्याज ही क्यों न हो आजकल इन चीज़ों से भी हैसियत नपने लगी है।

हद है आये दिन झाड़ू का कचरा उसके दरवाजे कर देती ज्यादातर उसमे प्याज के छिक्कल होते जो उड़ उड़ के सुगंधा के घर तक आते वो बार बार बोलती भी नेहा को लेकन नेहा के कान पे जूं तक न रेंगती इंसान दिखावे की ज़िन्दगी का कितना आदी हो गया कि व्यवहारकुशलता सादगी सब भूलता चला गया मयंक भी कहने लगा ज्यादा मत सोचा करो जो जैसा है बना रहने दो नहीं तो मुश्किल में पड़ जाओगी सुगंधा आश्चर्य से मयंक का मुँह देखती और मयंक हंस पड़ता सोचती आखिर इन्हें ऐसे लोगों के साथ उलझन क्यों नहीं होती यही सब सोच ही रही थी प्रेमा चाची आ गयी सुगंधा समझी बिटिया की शादी का कार्ड देने आई होंगी लेकिन ये क्या वो तो बस पल्लू पकड़ के रोने लग गयी सुगंधा बदहवास सी पूछने लगी क्या हुआ चाची रो क्यों रही हो तो बताने लगी कि उनकी बिटिया का रिश्ता टूट गया बड़ी आस थी कि भैया अब बिटिया अपने घर की हो जायेगी लेकिन अब होनी को जो मंजूर ।

सुगंधा ने पूछ ही लिया अरे चाची बात क्या हो गयी तुम तो बहुत खुश थी अचानक क्या हो गया ? हाँ बिटिया खुश थी मगर अब हम क्या करते लड़की का भाग्य लड़के बाले 1 कुंतल अरहर की दाल दहेज में मांग रहे थे और बरातियों के खाने को भी दाल और चावल की माँग से टले ही नहीं बाद में बरातियों का टीका कर 1किलो अरहर दाल के पैकेट के साथ बिदाई अब तुम्हीं बताओ बेटा इत्ती दाल तो लाकर में भी जमा नहीं करी सो लड़के बाले पीछे है गए ।

प्रेमा चाची रो रो के परेशान बोलती जा रही चार साल से दाल का एक एक दाना कैसे जमा किया बिटिया ये तो हम ही जानते हैं घर में सबने गरीबी में 1 समय सेब खाके गुजर की चार चार दिन रोटी नहीं बनी घर में तुम्हारे चाचा तो सवेरे सवेरे निकल जावे हैं अब तुम तो जाने हो वे तो पाव भर कलेजी से ही रोटी खा लेवे बेचारे मछली मटन भी न माँगे की प्याज पड़े है मैं तो ऐसे ही बना दूँ अब कित्ता समझाया लड़की बालों को की मान जाओ भैया शादी में शाही बिरयानी पनीर, तंदूरी चिकन सब बनवा देवे मगर बे तो माने ही नहीं बोले हम गरीवों का खाना न खाये हमारे भी तो कोई समाज में इज्जत है अरे लोग क्या कहेंगे की कैसे घर से सम्बन्ध जोड़ा ।

मैं तो बेटा राजी हो गयी थी की टीका कर सबको इज्जत से 1 किलो दाल का पैकेट दूँगी हमारे भी दरवाजे की रौनक बढ़ जावेगी और बाराती भी नाम लेवेंगे लेकिन दहेज में एक कुंतल दाल न दे पा रहे मान जाओ भैया मगर न माने सो और चाची धाड़ धाड़ रोना चालू । सुगंधा बड़ी परेशान हो गयी तो मयंक ने पूछ लिया क्या हुआ आज बहुत परेशान दिख रही हो तियुरियां चढ़ी हैं तुम्हारी सुगंधा ने आव देखा न ताव पूछ लिया मयंक से तुम्हारे पाप के खेत थे न तुमने बताया था ?? मयंक हक्का वक्का की ये खेत की बात अचानक कहाँ से आ गयी? बोला क्यों थे मगर अब नहीं हैं नहीं हैं तो खेत खरीद लो हर साल ही तो कभी प्याज तेज तो कभी दाल कल को अरहर की दाल और प्याज के पीछे हमारी किट्टू की भी मंगनी न टूट जाये कहीं हमें भी अपनी किट्टू की शादी में दाल और प्याज की चिकचिक से दो चार न होना पड़े मैं नहीं चाहती की अरहर की दाल की बजह से हमारी किट्टू की शादी टूट जाये ………..

— अंशु प्रधान