धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वीरवार को किसी कब्र या साईं मंदिर में क्यों जाएँ?

आज वीरवार है। प्रात:काल उठते ही हर हिन्दू के मन में आज किसी आध्यात्मिक स्थल पर जाने की इच्छा हो उठती हैं। कोई हिन्दू किसी मुसलमान की कब्र पर सजदा करने जायेगा। कोई हिन्दू साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां की मूर्ति पर चमत्कार की इच्छा से मन्नत मांगने जायेगा। मगर पूरे हिन्दू समाज में शायद ही कोई महर्षि वाल्मीकि के वाल्मीकि बस्ती स्थित मंदिर में जायेगा। कारण स्पष्ट है की महर्षि वाल्मीकि साईं बाबा के समान चमत्कार करने की क्षमता नहीं रखते। न ही वाल्मीकि बस्ती में अपेक्षित से पड़े मंदिर में जहाँ मक्खियाँ भिन्न भिना रही होती है कोई सुंदरता हैं। अनेक हिन्दुओं का मानना है कि महर्षि वाल्मीकि तो हिन्दू समाज के शोषित वर्ग वाल्मीकि समाज के अराध्य है, हमारे नहीं है। अनेक हिन्दू जातिवाद की मानसिकता के चलते वाल्मीकि बस्ती में नहीं जाते।

सबसे अचरज की बात यह भी है कि हिन्दू समाज वाल्मीकि के शिष्य श्री राम जी से सम्बंधित दिवाली, दशहरा तो बड़े चाव से बनाता हैं जबकि श्री राम जी के गुरु महर्षि वाल्मीकि की अपेक्षा करता हैं। वाल्मीकि अपने होते हुए भी पराये बना दिए गए जबकि भारत पर आक्रमण करने वाले, जिहादी विदेशी मुसलमानों की कब्रें अपनी हो गई , मांसाहारी और अन्धविश्वास फैलाने वाला साईं बाबा भी अपना हो गया। यह गड़बड़ झाला मेरी समझ में तो नहीं आया।

सम्पूर्ण वाल्मीकि रामायण में श्री रामचन्द्र जी महाराज पुरुषार्थ करते दीखते हैं। वाल्मीकि भी चमत्कार में नहीं अपितु पुरुषार्थ में विश्वास रखने का सन्देश देते हैं। श्री राम जी का जीवन चरित्र ,सदाचारी आचरण सदियों से विश्व जनमानस को प्रेरणा देता आया हैं। उनके गुरु द्वारा रचित रामायण का महान सन्देश हमें चमत्कार की नहीं अपितु पुरुषार्थ की प्रेरणा देता हैं।

आईये आज हम यह प्राण ले की हर वीरवार को किसी मुसलमान की कब्र पर नहीं, किसी चाँद मियां के साईं मंदिर में नहीं अपितु वाल्मीकि रामायण के रचियता एवं श्री राम चन्द्र जी महाराज के शिक्षा गुरु महर्षि वाल्मीकि के मंदिर में जायेंगे। श्री रामचन्द्र के समान पुरुषार्थ करने की, श्रेष्ठ कर्म करने की, सदाचारी बनने की, देश,धर्म और जाति की रक्षा करने की और हिन्दू समाज के सबसे बड़ी बीमारी जातिवाद को मिटाने की प्रेरणा लेंगे। वाल्मीकि समाज के युवकों को नशे से बचने की, चरित्र निर्माण की, जनेऊ धारण करने की, गौरक्षा की, हवन और संध्या करने की प्रेरणा देंगे। इस संकल्प की पूर्ति से न केवल अन्धविश्वास निवारण होगा अपितु हिन्दू समाज संगठित भी होगा। इसी में सभी की भलाई है।

मेरे साथ इस अभियान में कौन कौन हैं?

— डॉ विवेक आर्य