मुक्तक/दोहा

खुशी इतनी मिली

खुशी इतनी मिली आँचल में समेट न पाऊं
आकाश में उड़ूं या दरिया में घर बनाऊं
हार गया नशीब हुई है विश्वास की जीत
जमीं पर कदम न रुकते किस दुनिया में जाऊं
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तय कर लिया वो राह जो था बहुत मुस्किल
अब ज्यादा दूर नहीं है मुझसे मेरी मंजिल
मेहनत के आगे कुछ नहीं है नामुमकिन
हो गयी खुशी हासिल चल जश्न मना ऐ दिल
-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “खुशी इतनी मिली

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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