मुक्तक/दोहा

मुक्तक

बसुधैव कुटूम्बकम का पहले पढ़ाते थे पाठ
आज अपने परिवार से ही बनती नहीं है बात
अपने स्वार्थ में हम इस कदर पागल गये हैं
आज दिल ने जिगर का छोड़ दिया है साथ

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “मुक्तक

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मुक्तक में जो लिखा ,एक दम दरुसत .

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