कुण्डली/छंद

कुंडलिया छन्द

1.) कुण्डलिया के छंद में

कुण्डलिया के छंद में, कहता हूँ मैं बात
अंत समय तक ही चले, यह प्यारी सौगात
यह प्यारी सौगात, छंद यह सबसे न्यारा
दोहा-रौला एक, मिलाकर बनता प्यारा
महावीर कविराय, लगे सुर पायलिया के
अंतरमन में तार, बजे जब कुण्डलिया के

(2.) जिसमें सुर-लय-ताल है

जिसमें सुर-लय-ताल है, कुण्डलिया वह छंद
सबसे सहज-सरल यही, छह चरणों का बंद
छह चरणों का बंद, शुरू दोहे से होता
रोल का फिर रूप, चार चरणों को धोता
महावीर कविराय, गेयता अति है इसमें
हो अंतिम वह शब्द, शुरू करते हैं जिसमें

— महावीर उत्तरांचली

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६