गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : सदा

गुनगुनाते हुए आंचल की हवा दे मुझको
उंगलियां फेर के बालों में, सुला दे मुझको

हर एक पल तू मेरे सामने ही रहता है
वफ़ा की राह में चाहे तो भुला दे मुझको

सिलसिला दर्द का दिल में न ये थमने पाये
मेरी रुसवाई का कुछ और सिला दे मुझको

रात भर ख़्वाब में आकर मुझे सताता है
भूल जाऊँ तुझे कुछ ऐसी दवा दे मुझको

राहे-उल्फ़त में तेरा साथ नहीं छोड़ूँगा
जहाँ बेदर्द ये, जो चाहे सज़ा दे मुझको

कोई गुनाह-ख़ता, सरकशी न हो मुझसे
प्यार की महक बिखेरूँ, ये दुआ दे मुझको

ख़ार में रह के भी फूलों की तरह मुस्काऊँ
ऐ ख़ुदा हुस्न की कुछ ऐसी अदा दे मुझको

भूल पायेगा नहीं ‘भान’, हसीं लम्हों को
आके उन वादियों में, फिरसे सदा दे मुझको

— उदय भान पाण्डेय ‘भान’

उदय भान पाण्डेय

मुख्य अभियंता (से.नि.) उप्र पावर का० मूल निवासी: जनपद-आज़मगढ़ ,उ०प्र० संप्रति: विरामखण्ड, गोमतीनगर में प्रवास शिक्षा: बी.एस.सी.(इंजि.),१९७०, बीएचयू अभिरुचि:संगीत, गीत-ग़ज़ल लेखन, अनेक साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव