कुण्डली/छंद

कुण्डलिया छंद

(1)
वृन्दावन अरु अवध में, ऐसे संत विरक्त,
उनके चरण सरोज रज, मस्तक धारे भक्त |
मस्तक धारे भक्त, भेद कबहू मत करिये
दिन अरु रात ख़याल, ईष्ट अपने का रखिये
कह लक्ष्मण कविराय,ह्रदय को रखना पावन
बसे अवध में राम. कृष्ण बसते वृंदावन
(2)
कामी को प्रिय कामिनी, लोभ मोह के दाम,
रसिक प्रिय के रसिक वे, कहलाते घनश्याम
कहलाते घनश्याम, भजे नित राधा राधा
है करुणा के धाम, हरे जो जग की व्याधा
कह लक्ष्मण कविराय,संत होते निष्कामी
होत न बंधन मुक्त, ह्रदय से रहे सकामी
(3)
आजादी की आड़ में, हिंसा है आबाद,
इतने वर्षों बाद भी, झेल रहे अवसाद
झेल रहे अवसाद, काम न किसी को मिलता
खट्काएं हर द्वार, खूब तलाश में फिरता
लक्ष्मण बढती देख, देश में अब आबादी
मिले सभी को काम, तभी सच्ची आजादी
(4)
शिक्षा के पद बिक रहे, यह व्यापक व्यापार
गीता के सन्देश है, शिक्षा का आधार
शिक्षा का आधार, कर्म का पाठ पढाता
चक्षु ज्ञान के खोल,दिशा का बोध कराता
कह लक्ष्मण कविराय, ज्ञान की मांगे भिक्षा
गीता के सन्देश, कर्म की देते शिक्षा |

लक्ष्मण रामानुज लडीवाला, जयपुर (राज.)

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- lpladiwala@gmail.com पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)