गीत/नवगीत

नवगीत : हम बेरोजगार हैं

डिग्रियां नहीं जल रहीं
हमारे ख्वाब जल रहे हैं
नौकरी की तलाश में
दर-दर भटक रहे हैं
समानता का अधिकार सबको मिला है
फिर आरक्षण क्यों लगाया
कोई पूछता है जब कि कौन हो तुम
तो हम कहते हैं
हम बेरोजगार हैं हम बेरोजगार हैं

लड़का हो या लड़की
हर युवां परेशा है
फयूचर की चिंता में
अपनों से वो जुदा है
इनकी बात न भाती है अब किसी को
क्या बेरोजगारी कहते हैं इसी को
कोई पूछता है जब कि कौन हो तुम
तो हम कहते हैं
हम बेरोजगार हैं हम बेरोजगार हैं

धरना दे दे के बंद हुई साँसें हमारी
किसी ने न पूछा कैसी हालत है हमारी
कोई दवा न मिली
सब चपेट में आ रहे हैं
ये बेरोजगारी कैसी है बीमारी
कोई पूछता है जब कि कौन हो तुम
तो हम कहते हैं
हम बेरोजगार हैं हम बेरोजगार हैं

विकाश सक्सेना