कहानी

लम्बी कहानी : रंगों के उस पार

आप मानें या ना मानें, काले-गोरे का विचार सबसे ज्यादा हम भारतीयों को ही परेशान करता है, खासकर जब बेटियों के विवाह का प्रश्न आता है. पुरुष चाहे जिस रंग का हो,पत्नी उसे गोरी ही चाहिए. बाकी गुण चाहे जितने भी हों, यदि गोरा रंग ना हो तो हमारे पुरुष मुंह बिचका देते हैं. किसी टाइम मशीन में बैठकर आप पांच सात हज़ार वर्ष पीछे चले जाइये —— भारत भूमि पर श्वेता, शुभ्रा, गौरा, उज्ज्वला, बेला, चमेली, मालती आदि अनेक नामों से आपको सफ़ेद चमड़ी का ही उत्सव मिलेगा । हमारे हिन्दू धर्म में समस्त स्त्रियोचित गुणों से संपन्न, एक देवी की कल्पना की गयी और उसको सफ़ेद रंग से मंडित कर दिया गया.

या कुन्देन्दु तुषार हार धवला,
या शुभ्र वस्त्रावृता
या वीणा वरदंड मंडित करा
या श्वेत पद्मासना.

मैं इसलिए क्षुब्ध हूँ कि आज मेरी बेटी प्रिया की तीसरी बेटी का जन्म हुआ है. पहली दोनों बेटियों का रंग अपनी गोरी चिट्टी दादी पर पडा है. नई बच्ची को देखकर दादी ने कुछ कहा तो नहीं, मगर उनका बुझा सा चेहरा उनके दिल की बात छुपा भी ना सका. परिवार नियोजन के इस युग में तीसरी कन्या! एक पोते की आस थी, वह भी जाती रही.

बच्ची के माँ बाप खुश हैं. दोनों बड़ी बेटियों के साथ सर से सर जुडाये नई बच्ची का मुआयना कर रहे हैं. प्रिया की सास की चुप्पी मुझसे बर्दाश्त नहीं हुई तो मैं प्रसाधन कक्ष के बहाने वार्ड में टहलने लगी. तभी किसी ने मुझे पुकारा, ‘मिसेज़ दास!’

मुझे कौन पहचानेगा यहाँ.? यहाँ तो हम अभी पांच सात सालों से ही आये हैं. और इस अस्पताल में तो पहली बार. बुलानेवाली एक अधेड़, पतली काठी की भारतीय स्त्री थीं. मैं बोली, ‘पहचाना नहीं आपको!’

‘मैं हूँ. मिसेज़ पारेख . कोयना की माँ!’
‘कोयना पारेख! नाम तो याद पड़ता है. शक्ल भी कुछ कुछ याद है परन्तु यह नहीं याद कि कितने वर्ष पहले उसे पढ़ाया था. ‘
‘अब वह छब्बीस वर्ष की हो चली. इस हिसाब से बीस साल पहले.’
‘अच्छा अच्छा! कैसी है ? क्या करती है ?’
‘सोलिसिटर की पढाई की. अभी वह एक बड़ी फर्म में लगी है. ‘
‘आप यहाँ क्या कर रही हैं ?’
‘उसी को बच्चा होनेवाला है.’
‘अच्छा! यह तो बड़ी खुशी की बात है. ‘
‘लेबर वार्ड में गयी है. शायद सिज़ेरियन करना पडेगा. ‘

तभी एक नर्स मुझे ढूँढती हुई आई. उसने बताया कि प्रिया को अभी और दो दिन रोका जाएगा. बच्ची को बुखार है. जब तक सामान्य नहीं हो जाता घर नहीं ले जा सकेंगे. वापसी में, रास्ते भर आशीष अपनी दोनों बेटियों से छेड़खानी करता रहा मगर उसकी माँ गुमसुम बैठी रहीं. और मैं यादों के तहखानों में अन्दर-अन्दर उतरती चली गयी —-कोयना को ढूँढने.

कोयना मिली! पांच साल की. दुबली पतली बच्ची जो अपने आपको लड़कों की तरह संबोधित करती थी. और पैंट -शर्ट पहनती थी. केवल गुजरती में बोलती थी और केवल लड़कों के साथ खेलती थी. मिसेज़ पारेख की दूसरी संतान. उनकी पहली बेटी से पंद्रह साल आयु में छोटी. मिसेज़ पारेख उस ज़माने में भी कोयना की माँ कम,दादी ज्यादा लगती थीं. बच्चों को ढेरों गोलियां टॉफी आदि भेज देतीं. उनकी स्वीट-शॉप थी यह तो आप समझ ही गए होंगे.

कोयना मिली — मार्टिन के आगे पीछे भागती, उसी के संग खाने की मेज़ पर खाना खाती., उसी के संग घर आती जाती. मार्टिन अंग्रेजी में बोलता, वह गुजराती में जवाब देती. मार्टिन बोलता जाता वह सुनती जाती. फिर एक दिन उसे अंग्रेजी में बोलना आगया. मार्टिन गोरा – गोरा,सुनहरे रेशमी बालों वाला,मकई का सिट्टा! कोयना काली आबनूस की छडी!! दोनों एकदम भिन्न, मगर कितने अभिन्न!!!

कोयना की बात आगे ही नहीं बढती जबतक मैं आपको मार्टिन के बारे में ना बताऊँ. उस साल की पहली कक्षा, यानी पाँच से छह साल के बच्चे. सितम्बर में स्कूल खुलने के साथ -साथ उनके जन्मदिनों का सिलसिला शुरू हो जाता और साल के अंत तक चलता रहता. इस तरह एक ही क्लास में साल भर की छुटाई बडाई हो सकती थी. मार्टिन सबसे छोटा था, उम्र में और क़द में भी. अफरीदी नस्ल के बच्चे उससे दोगुने । महा लड़ाके,शोर मचाते, दंगाई! ना उनहोंने पढ़ना ना लिखना. भारतीय बच्चे — दब्बू, पढ़ाकू और चुप चुप! मार्टिन इन सबसे अलग. अंग्रेज बच्चों से भी कटा कटा रहता. एकदम शांत. ना कोइ शरारत न कोइ बुरी बात. ठीक से पढता लिखता. हमेशा खुश नज़र आता. पहले ही दिन उसने अपने बसते में से एक पात्र निकालकर दिया. विशेष आग्रह था की उसे कूदने फांदने ना दिया जाय क्योंकि अभी उसके कलाई व् कोहनी के जोड़ों की हड्डियां बेहद मुलायम और कमजोर हैं और जबतक उनमे थोड़ी और मजबूती ना आ जाय मार्टिन अपने शरीर का भार उनपर ना डाले. अतः पी. टी. की क्लास में मुझे उसका ख़ास खयाल रखना पड़ता था.
शायद अपनी सुरक्षा के कारण वह अन्य बच्चों से दूर ही रहता. कभी कभी एक गेंद लेकर अलग अकेला खेलता मगर अगर कोइ शरारति बच्चा गेंद छीन कर भाग जाता तो वह उसे वापिस झपटने की कोशिश भी नहीं करता था. चुपचाप छोड़कर एक और हो जाता था या मुझे आकर बता देता था. कभी बच्चों का आपस में झगडा हो जाय तो वह निर्लिप्त खडा रहता.

मैं सोचती कि यह कहाँ का महात्मा बुद्ध आ जुड़ा. अजीब बात थी कि अन्य बच्चे उसे ज़रा भी तंग नहीं करते थे. आमतौर पर रानिल जैसे महायोद्धा एंड को० उसकी कोइ चीज़ नहीं छीनते थे और शनेल जैसी तीखी गैंग लीडर भी उसे ममत्व में घेरे लेती थी. फिल्म देखते समय आगे धमकने वाले बुली मार्टिन को बिना कहे अपने आगे बैठा लेते. मार्टिन मुस्कुराकर थैंक्यू भर बोल देता. कलाई की कमजोरी लिखाई में भी नज़र आती थी. अक्षर एकदम धुँधले होते हालाँकि अन्य बच्चों की अपेक्षा उसका अक्षर ज्ञान अधिक था.

मार्टिन के अनार्मुखी व्यक्तित्व का कारण शायद यह था की उसकी माँ डोरोथी एक अधेड़ उम्र की स्त्री थी. पिटा जॉन भी उसी उम्र का रहा होगा. अतः बच्चे के विकास में अनावश्यक प्रौढ़ता थी. डोरोथी और भी तीन चार बालकों को संग स्कूल लाती व् ले जाती थी. यही उसकी आय का साधन था.

आने के करीब एक महीना बाद मार्टिन बोला कि आज उसका जन्मदिन है. . जन्मदिनों की सूची मेरी कुर्सी के पीछे दीवार पर टंगी रहती थी. मैंने देखा कि उसके जन्मदिन में अभी सात महीने बाकी है. मार्टिन सपने देख रहा था. इस उम्र के बच्चों को तो रोज़ बर्थडे मनाने को चाहिए. मुझे हँसी आ गयी.

‘आज नहीं मार्टिन. आज कुछ और होगा.’
‘नहीं जेम्स का बर्थडे आज ही है. ‘
‘वह क्या तुम्हारा भाई है ?’
‘नहीं वह मेरा अंकल है. ‘
‘तो फिर वाही केक काटेगा. तुम हैप्पी बर्थडे गाना.’
‘नहीं मैं ही जेम्स हूँ. मेरा नाम मार्टिन जेम्स टेलर है. ‘
‘ओह! ऐसा ही है. मैं तो भूल ही गयी थी. हैप्पी बर्थडे जेम्स. ‘
‘मेरी बहन कैरन भी आयेगी. वह मेरे लिए रेल का इंजन लायेगी. सचमुच चलने वाला. वह मम को बहुत तंग करती है. मेरा डैड ना, दिमाग का थोड़ा ढीला है. मम को सारा काम करना पड़ता है. कभी कभी वह बहुत रोने लगता है. तब मम उसे अस्पताल भेज देती है. ‘

मार्टिन बहुत खुश था मगर जो कुछ उसने बताया वह कोइ बहुत खुशनुमा वृत्तांत नहीं था. मेरे पल्ले कुछ पडा कुछ नहीं. इसलिए शाम को जब डोरोथी उसे लेने आई,मैंने उसे रोक कर बताया कि आज मार्टिन बहु चहक रहा था,. उसकि बातें बेहद उलझी पुलझी सी थीं. अंकल जेम्स के जन्मदिन को अपना समझ रहा है.

डोरोथी झेंप गयी. उसका चेहरा एकदम लाल हो गया. ऐलिस की माँ के साथ मार्टिन को घर भेज कर वह स्वयं मेरे पास रुक गयी.
वह कहने लगी,
‘आप किसी और से सुनें इसके पहले ही मैं खुद आपको यह कहानी सुना देती हूँ. ताकि भविष्य में कोइ ग़लतफ़हमी ना हो. मार्टिन मेरा बेटा नहीं नाती है. मेरा बेटा जेम्स सात बरस पहले मर चुका है. उसने अपने आपको फाँसी लगा ली थी. —-‘

मेरी हथेली लपक कर मेरे मुँह पर चिपक गयी.

‘घबराइये नहीं. जेम्स एक मेधावी प्रतिभाशाली कलाकार था. कभी कोइ गलत काम उसने नहीं किया. वह स्वभाव से ही चुप और बेहद संवेदनशील व्यक्ति था. लन्दन यूनिवर्सिटी से आर्ट में स्नातक की डिग्री करके वह आगे पढ़ना चाहता था. मगर हम इतने अमीर न थे कि उसका खर्चा उठा पाते. इसलिए दिन में वह अपने बाप के साथ उसी के गेराज में मोटरें ठीक करने लगा. बाकी समय में वह तस्वीरें बनाता. ऊपर अटिक में उसका स्टूडियो था —-. कूड़ा भी उसके हाथ में कलाकृति बन जाता. उसकी दुनिया उसके मन में फैली थी. जहां सब सुन्दर था. चुप रहता मगर खुश रहता. कब उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया,हमें पता भी नहीं चला. मेरी बेटी कैरन उससे दस वर्ष छोटी है. जेम्स तब बाईस का था और कैरन सिर्फ बारह साल की. एक दिन डिनर के लिए मैंने उसे कई आवाजें दीं पर उसने जवाब नहीं दिया. तो उसका पिता जॉन उसे बुलाने ऊपर गया. वहां जॉन ने उसे छत से झूलते हुए पाया. —–‘

डोरोथी की हिचकी उसके कंठ में अटक गयी.

‘मत बताओ डोरोथी. बहुत कष्ट होता है सुनने में. ‘

‘हाँ! पर क्या करूँ ? असलियत कैसे छुपाऊँ ? शॉक के कारण मेरा पति जॉन वह सब भूल गया. उसकी यादाश्त जाती रही. मैं सदमे से बेहाल हो गयी. हमारी लाडली बेटी कैरन अपने भाई से उलटी थी स्वभाव में. खिलंदड़ी, वाचाल, लड़ाकी! पढाई में भी फिसड्डी!! बाप और भाई से पैसे लेकर खूब अपनी सज -धज पर खर्चती थी. एकाएक उसकी दुनिया में कोइ नहीं बचा. बाप —मानसिक रूप से अस्थिर, भाई मर गया, और माँ ?– सारा दिन रोती रहती बेटे के नाम को. मैं रो – रोकर कहती पहले ही चला जाता जेम्स तो मैं दूसरा पैदा कर लेती पर अब क्या करूँ बुढापे में? जॉन को तेरी जगह क्या दूं ?’
‘समय धीरे धीरे हमारे जख्मों पर जमने लगा. तभी एक दिन बाथरूम की आल्मारी में देखा प्रेगनेंसी टेस्ट का डिब्बा पड़ा था. कैरन *****!! मैं चीख पड़ी. यह डिब्बा कहाँ से आया? कौन लाया ?
कैरन सहज भाव से नीचे आई और बोली मैं लाई. तुम अपसेट मत हो मगर जान लो कि मैं पेट से हूँ. सिर्फ तेरह बरस की उम्र थी उसकी. मैं हताश सोफे पर गिर पड़ी और जार – जार रोने लगी. मेरे मुंह से एक के बाद एक प्रश्न, पिस्तौल से दागी हुई गोलियों की तरह बरसने लगे. मैंने कहा की तेरी खातिर मैं ज़िंदा बैठी हूँ वरना यह नरक सा जीवन कबका ख़त्म कर देती. कैरन घबराकर सिसकने लगी. उसकी सारी देह काँपने लगी. मुझे सहसा एक डर ने जकड लिया. मेरी नादाँ बच्ची को अगर कुछ हो गया तो ? भगवान् मसीह मुझसे यह पाप मत करवाना. वह निराश होकर जाने लगी. मैं अकेली ? —–नहीं. एक कैरन ही तो बची थी. कहाँ जायेगी ? किसी केयर होम में ?क्या उत्तर दूंगी जब जॉन को होश आयेगा और वह पूछेगा कि उसकी लाडली कहाँ है ? मेरे ही प्रश्न दानवों की तरह मुझे डराने लगे. उन सब का उत्तर मेरे ही पास था. अगर उस क्षण मैं टूट जाती तो सब चले जाते. …… मैंने लपक कर उसका स्कर्ट पकड़ लिया. वह मुडी और मेरी बाहों में सिमट गयी. रोते रोते बोली कि यह बच्चा उसने मेरे लिए बनाया है.

मैं चौंक गयी. मेरे लिए ? मगर क्यों ??

बोली कि मेरी तरफ देखो मम. मेरी दुनिया अब कहाँ है? डैड कितना चाहते थे मुझे. कितना लाड प्यार देते थे. हम दो यार दोस्त थे न कि बाप और बेटी. और अब वह बात भी नहीं कर पाते. न ताश न टेनिस. न तुम मुझसे मोहल्ले भर की गप्पें हांकती हो. जेम्स इतना बेईमान निकला मैं ही थी जो उसके आस पास डोलती थी. पेंटिंग करते समय उसे खाने पीने की भी सुध नहीं रहती थी. मैं उसे रंग बुरुश पकड़ाती जाती थी. भाव उसके, राय मेरी. जाने किसके गम में वह जा मरा. एक बार भी कैरन याद न आई. जाते जाते गुडबाय तो कर जाता. स्कूल के बाद मैं जेनेट के घर पडी रही. तुम रोती रहीं जेम्स को. मैं ज़िंदा डोल रही थी तुम्हारे सामने पर तुमने मेरी सुध ना ली. मुझे साथी चाहिए था. मैं भी अन्दर तक खाली हो गयी थी. घंटों जब मैं रोती थी तब सबसे ज्यादा सहारा दिया जेनेट और उसके भाई डैनी ने. बस एक दिन मुझे यह आईडिया आया और मैं रुकी नहीं.

गलती मेरी ही थी मिसेज़ दास. मैं ही रोज़ रोती थी कि अब मैं क्या करूँ. मैं बच्चा पैदा करने के काबिल नहीं रह गयी थी. कैरन इस प्राकृतिक तथ्य से अनजान थी. तेरह साल की उम्र में स्कूल में यौन शिक्षा के अंतर्गत उसे स्त्री के प्रजनन संस्थान की प्रक्रिया समझाई गयी. तब उसे पता चला की मेरी जनन शक्ति अब क्यों नहीं रही. मेरी विपदा के काल में कैरन का उठना बैठना हमारी पड़ोसन की बेटी जेनेट के संग लगा रहा. उनहोंने परिवार से भी बढ़कर हमारी सहायता की थी.
कैरन ने खुद जेनेट के भाई के संग मेल जोल बढाया और गर्भवती हो बैठी. उसे बताया भी नहीं.
मैं ही पागल मरे हुए को रोती रही और ज़िंदा बेटी की ओर से लापरवाह हो गयी थी. वह बेचारी अपनी अच्छाई के कारण इतनी बड़ी नादानी कर बैठी. ‘

डोरोथी सुबकने लगी थी. मैंने पानी पिलाया और पूछा कि क्या मार्टिन डैनी को जानता है ?

डोरोथी आगे कहने लगी, ‘मैं किसी को भी यह सब नहीं बता सकती थी. अतः मैं ने अपने पति की मनश्चिकित्सक से सलाह ली. कैरन डैनी को बताना नहीं चाहती थी. वह पढने में होशियार था.
ओ लेवल का इम्तिहान देने वाला था उस साल. कैरन बोली कि मैंने उसे एक तरह से इस्तेमाल किया है ताकि मैं अपने पिता को उसका खोया हुआ साथी दे सकूं. सुनकर शायद वह खफा हो जाय. हो सकता है हमारी दोस्ती ख़त्म हो जाय. वह बेहद अच्छा इंसान है मैं उसे खोना नहीं चाहती.

जॉन की डॉक्टर ने कहा बेहतर होगा अगर उसे बताया न जाय क्योंकि अगर वह खुश भी हो तो उसका रिजल्ट बिगड़ सकता है. बाप बनना एक चुनौती है खासकर एक सोलह सत्रह साल के लड़के के लिए. मेरी बेबी पूरी पुरखिन बन गयी थी.

हमें जॉन के इलाज के लिए एप्सोम मेंटल हॉस्पिटल में जाना पड़ता था. यह बहुत दूर था. मगर हमें बहाना मिल गया और हमने अपना पुराना घर बेच दिया. यूं भी वह घर काटने को दौड़ता था. हम यहाँ सरे में आ गए. यहाँ चुप चाप कैरन ने इस बच्चे को जन्म दिया. दो साल के बाद वह वापिस अपनी पढाई ख़त्म करने चली गयी. बहुत तेज़ दिमाग नहीं है मगर अपने गुज़ारे लायक उसे एक नौकरी मिल गयी है. मार्टिन के आ जाने से जॉन की हालत में सुधार आने लगा. पूरी तरह उसकी यादाश्त तो वापिस नहीं आई मगर इस बच्चे को वह जेम्स ही समझता है. बुलाता भी जेम्स है. उसी के भरम को बनाए रखने के लिए हम इसका जन्म दिन दो बार मनाते हैं. वयस्क जेम्स का मर जाना उसकी बुद्धि से कतई मिट गया है. वह एक तरह से फिर से अपना बेटा पाल रहा है. — माँ की उम्र इतनी कम होने के कारण बच्चे में कुछ कमजोरी रह गयी है. बहुत हट्टा कट्टा नहीं है मैं इसे समझाती रहती हूँ कि दंगे करने वाले बच्चों से दूर रहा करे. आप भी जरा ख्याल रखियेगा. कैरन को यह अपनी बहन ही समझता है. ‘

मैंने पूछा, ‘क्या डैनी को बताया ?’

‘हाँ ज़ब वह यूनिवर्सिटी जाने लगा तब कैरन ने उसे बता दिया मगर इसकी कोइ जिम्मेदारी उस पर नहीं है. दरअसल माँ पर भी नहीं है. मेरा बीमार पति इसके सब काम करता है. टाइम इज़ अ बिग हीलर. अब तो हम चाहते भी नहीं कि जॉन की यादाश्त वापिस आये. ‘

एक लंबा निःश्वास लेकर डोरोथी चुप हो गयी. मैंने उसे आश्वस्त किया कि मार्टिन कितना लोकप्रिय होता जा रहा है. वह खुश होकर चली गयी.

डोरोथी की कहानी पचाने में और उसकी भयावहता से उबरने में मुझे बहुत समय लग गया. नवम्बर भी चला गया. तभी क्लास में कोयना का आगमन हुआ. दीवाली पर डोरोथी की गली के नुक्कड़ वाली दूकान मिस्टर एंड मिसेज़ पारेख ने खरीद ली. यूं तो सब दूकान में आते थे मगर मार्टिन और उसकी अधेड़ उम्र की माँ मिसेज़ पारेख को अपने जैसी लगीं. उसकी पहली बेटी कीर्ति यूनिवर्सिटी चली गयी थी फार्मेसी पढने. उससे पंद्रह साल छोटी यह कोयना अक्सर दुकानके काउंटर के पीछे खड़ी होती और अपने पिता की मदद करती. दूकान के ऊपर ही उनका फ्लैट था मिसेज़ पारेख ने मार्टिन की माँ से सलाह करके कोयना का दाखिला भी उसी के स्कूल में करवा दिया. अब दोनों माएँ साथ साथ अपने बच्चों को स्कूल लाती थीं.
कोयना के आ जाने से मार्टिन में निखार आ गया. कोयना छह महीने बड़ी थी मगर मार्टिन अपने को उसका लीडर समझने लगा. कोयना को हर बात बताना जैसे उसी का धर्म था. स्कूल में कौन कौन अच्छा या बुरा है,क्लास में क्या क्या,कहाँ कहाँ रखा हुआ है, कौन कौन सी किताबें मज़ेदार हैं,कौन्कर (लंगड़ ) में धागा कैसे पिरोते हैं आदि सब गुर उसने सिखाये. कोयना नई थी. अंग्रेजी कम समझ पाती थी. अफरीदी बच्चों से डरती थी कि कहीं मार ना दें. मगर उसे मार्टिन का संरक्षण मिला हुआ था अतः किसी ने उसे नहीं छुआ.
छोटे छोटे कटे लड़कों जैसे बाल,लड़कों जैसे कपड़े और अपने आप को पुल्लिंग में संबोधित करती थी. मैंने संशोधन किया तो मुक्का दिखाकर गुजरती में बोली कि ऐसा कहोगी तो मेरे बप्पा तुमको मारेंगे क्योंकि मैं उनका बेटा हूँ. बेटी तो कीर्ति बेन छे ना. रेस और पढाई दोनों में तेज. अपने खाली समय में वह अपनी दूकान के चित्र बनाती. बोतलें और उनमे भरी हुई टॉफ़ी एक पडी लकीर पर सजा देती. उनके पीछे कोयना काउन्टर पर खड़ी बेच रही है.

अगले दिन मैंने उसकी माँ को रोककर पूछा कि वह क्यों लड़कों की तरह बोलती है. वह झेंपकर बोली
‘क्या करूँ बेन. मेरे पति ने ही उसका दिमाग बिगाड़ा है. उसको लड़का चाहिए था. मेरी सासू माँ हर समय कुंडली लेकर फिरती थी कि लड़का जरूर होगा. उसी ने हमें मजबूर किया कि अब योग बनता है पुत्र जन्म का सो लो देखो यह कोयना आ धमकी. अब उसका बापू उसे बेटा ही बनाकर पाल रहा है. घर जाते ही नाश्ता खाकर दूकान में जा बैठती है.

धीरे धीरे मार्टिन भी कोयना की दूकान में खेलता नज़र आने लगा. प्लेग्राउंड में भी उन्हें साथ साथ खेलते देखती. मार्टिन गोरा कोयना काली. मार्टिन हलकी क़द काठी का, कोयना लम्बी डांग. मज़बूत लकड़ी जैसी कठिन हड्डियों वाली. शकल में अपने बाप पर पडी थी. माँ की लुनाई उसे छू भी नहीं गयी थी. अगले साल भी उन्हें ऐसे ही साथ साथ डोलते देखा. उसके बाद वह जूनियर स्कूल में चले गए.

समय के चक्र में में जीवन कहाँ से कहाँ चला गया. जाने कितने वर्ष और बीत गए. जाने कितने बच्चे आये और गए. वह नौकरी वह मुहल्ला सब छूट गए. अब आज, अचानक, अवकाश लेने के भी कई साल बाद,पहली बार कोयना की माँ ने मुझे पहचान लिया इस अस्पताल में. क्या अजीब इक्तेफाक था.

अगले दिन सुबह मैं फिर प्रिया से मिलने गयी. इतवार था अतः उसी तरह आशीष, दोनों बड़ी बेटियाँ और प्रिया की सास भी साथ थीं. कुछ देर बाद ही मिसेज़ पारेख भी नज़र आ गईं. मैं अपनी उत्सुकता रोक ना पाई. झट उठकर मिली. पूछा क्या हुआ कोयना को.

‘लड़का! अभी दिखाती हूँ. ज़रा दूध पिला ले. पंद्रह बीस मिनट बाद वह बच्चे को लाई. आसमानी शॉल में लिपटा,एकदम धूप सा गोरा बच्चा!

मेरे मुंह से निकल ही तो गया., ‘ये कोयना का बच्चा है ?’
‘हाँ शादी करी न उसने गोरे से. ‘
‘तुम्हारी लड़की!! पहले दिन से ही धोर्के ( गोरे ) के पीछे दौड़ गयी थी. मुझे याद है. ‘

हम दोनों हंस पड़े. वह बोली, ‘वही तो. मार्टिन जेम्स टेलर. आश्चर्य की बात है कि आपको अभी तक याद है. उसी से शादी हुई. ‘

मैंने मन में सोंचा कैसे भूल सकती हूँ डोरोथी को . उसकी दर्द भरी कहानी को. उसके साहसको. कहाँ होगी वह ? क्या खुश होगी ? मिसेज़ पारेख ने जैसे मेरे मन की बात पढ़ ली. बोलीं

‘डोरोथी और जॉन अब नहीं हैं इस दुनिया में. जब मार्टिन इक्कीस साल का हुआ तब हमने दोनों बच्चों की एक बड़ी पार्टी लन्दन के हिल्टन होटल में की. डोरोथी और जॉन तब जिंदा थे. दोनों बच्चे सारी उम्र साथ साथ रहे. मार्टिन ने ग्राफिक डिज़ाइनर का कोर्स किया. दोनो ने साथ साथ डिग्री ली. हमने कैरन को भी बुलाया था. वह लन्दन में ही जॉब करती थी.
इतनी खुशी का दिन आया था तो मेरे पति ने चाहा कि मार्टिन के बाप का भी हक़ बनता है. उसे भी बुलाना चाहिए. वह ऑस्ट्रेलिया में काम करता है. पर वह सुनकर बहुत खुश हुआ. और यहाँ आ गया. जब पार्टी पूरे जोर पर थी वह मंच पर चढ़ गया और गाने वाले के हाथ से माइक ले लिया फिर भरी सभा में चिल्ला कर पूछा कैरन क्या तुम मुझसे शादी करोगी. कैरन क्यों न मानती ? बस पार्टी के बाद वाले इतवार को चर्च में शादी हो गयी. कैरन अभी ऑस्ट्रेलिया में रहती है. उसके दो बच्चे हैं. पहले बेटी और अब एक लड़का.
इसके दूसरे वर्ष जॉन इस दुनिया से विदा हो गया. मगर डोरोथी के भाग्य में चैन नहीं लिखा था. कैरन की बेटी जब हुई वह ऑस्ट्रेलिया डिलीवरी के लिए गयी थी. मगर जब वापिस आई तो बीमार रहने लगी. कैरन बेटी को लेकर उससे मिलने आई थी. तभी हमने मार्टिन के साथ कोयना की सगाई रखी. कैरन दो महीने रहकर चली गयी. उसके जाने के कुछ ही दिन बाद डोरोथी मर गयी. उसे कैंसर था. कैरन ने सबकुछ मार्टिन के नाम कर दिया. डोरोथी के लियी बहुत रोई. उसका बच्चा आठ मॉस का हुआ है अभी इसलिए आ नहीं सकती. ‘

मैंने पर्स खोलकर कोयना के बच्चे को शगुन दिया. पूछा क्या नाम रखोगी इसका.

‘नील! नील डैनियल टेलर!! नील हमारे कृष्ण जी का भी नाम है और अंग्रेजी भी. ‘

बच्चे की चुम्मी लेकर मैं अपनी प्रिया के पास लौट आई. प्रिया ने पूछा — ‘माँ आपने कोइ नाम सोंचा नई बेबी का ?’
‘हाँ कोयना कैसा रहेगा ?’

समाप्त

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल kadamehra@gmail.com