सामाजिक

परीक्षाएँ ही नहीं, महत्त्वपूर्ण होते हैं प्रश्नपत्र भी

पिछले दिनों (जुलाई 2014 में) केरल कर्मचारी चयन आयोग (एस.एस.सी.) की ओर से ग्रैजुएट लेवल की एक परीक्षा में प्रश्न पूछा गया कि इनमें से सबसे लंबी ऐक्ट्रेस कौन है? उत्तर के लिए चार आॅप्शन दिए गए हैं जो इस प्रकार से हैं:
(1) हुमा कुरैशी (2) कटरीना कैफ़
(3) दीपिका पादुकोण (4) प्रीटि जिंटा

क्या सचमुच इसे प्रश्न कहा जा सकता है और वो भी ग्रैजुएट लेवल की एक प्रतियोगी परीक्षा का? हमारे यहाँ पढ़ाई का स्तर जो भी हो लेकिन प्रश्नपत्रों का स्तर संतोषजनक नहीं कहा जा सकता। कई बार प्रश्न बहुत ही घटिया स्तर के होते हैं जिनका सामान्य ज्ञान, विभिन्न विषयों अथवा ज्ञान-विज्ञान की स्तरीय जानकारी से कोई संबंध नहीं होता। कई बार कई प्रश्न पक्षपातपूर्ण भी होते हैं जिनमें किसी व्यक्ति, पार्टी, लिंग, जाति, भाषा, क्षेत्र अथवा धर्म विशेष की छवि को बिगाड़ने या महिमामंडित करने का प्रयास किया जाता है। उपरोक्त विवादास्पद प्रश्नपत्र में तर्कशक्ति संबंधी एक अन्य प्रश्न भी सम्मिलित है जिसमें दो वाक्य लिखे गए हैं- पहला वाक्य है: सभी महिलाएँ बिल्लियाँ हैं  दूसरा वाक्य है: सभी चूहे महिलाएँ हैं इस प्रश्न के आधार पर जो दो विकल्प सामने आए हैं वो हैं:
(1) सभी महिलाएँ चूहेँ हैं
(2) सभी चूहे महिलाएँ हैं

क्या इस प्रकार के प्रश्न महिलाओं के प्रति अपमान को नहीं दर्शाते? बिलकुल दर्शाते हैं और साथ ही ऐसे प्रश्न प्रश्नपत्र में रखने वालों की मानसिकता को भी दर्शाते हैं प्रश्नपत्र बनाते समय ऐसी मानसिकता और सतहीपन से बचना ज़रूरी है। प्रश्नपत्र ऐसे हों जिनसे किसी भी वर्ग की भावनाएँ आहत न हों और साथ ही उसका सही मूल्यांकन भी हो सके।

पुस्तकें ही नहीं प्रश्नपत्र भी हमारे ज्ञान और जानकारी में वृद्धि करते हैं प्रश्नपत्र हमें शिष्ट व सुसंस्कृत बनाने में सहयोगी हो सकते हैं प्रश्नपत्र हमारी जिज्ञासा को बढ़ाने में भी सहायक होते हैं प्रश्नपत्र पढ़ने के बाद हमें जिन प्रश्नों के उत्तर नहीं भी आते तो भी हम उनके उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं यदि परीक्षा में हम ठीक उत्तर नहीं लिख पाते तो भी जब तक हमें सही उत्तर नहीं मिल जाता हम चैन से नहीं बैठ सकते। ऐसे में प्रश्नपत्रों का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है इसलिए प्रश्नपत्र में प्रश्नों का चयन बहुत ही सावधानी और सूझबूझ से करना चाहिये। प्रश्न उपयोगी और सार्थक हों.

प्रश्नों की भाषा भी बोधगम्य अर्थात् आसानी से समझ में आने योग्य होनी चाहिये। जब प्रश्न ही नहीं समझ में आएगा तो उसका उत्तर क्या ख़ाक लिख पाएँगे? भाषा के साथ-साथ प्रश्नपत्र में वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ भी प्रायः देखने में आती हैं क्योंकि प्रश्नपत्र हल करने वाला प्रश्नपत्र से भी सीख रहा है, कुछ ज्ञान अर्जित कर रहा है अतः प्रश्नपत्र की भाषा और वर्तनी का विशेष ध्यान रखना भी आवश्यक है। प्रश्नपत्रों का रोचक होना भी अनिवार्य है। कुछ प्रश्न ऐसे भी होने चाहिएँ जिनका उत्तर लिखने में छात्र ख़ुशी महसूस करें.

कई बार प्रश्नपत्र बहुत ही घटिया कागज़ पर प्रिंट किये जाते हैं उनका प्रिंट भी अच्छा और स्पष्ट नहीं होता। ऐसे में प्रश्नपत्र को देखने मात्र से विरक्ति होने लगती है। प्रश्नपत्रों में रंगों का नितांत अभाव ही देखने को मिलता है। क्या रंग-बिरंगे सुंदर प्रश्नपत्र नहीं छपवाये जा सकते? क्या उनमें रंगीन चित्रों का समावेश नहीं किया जा सकता? रंगीन चित्रों पर प्रश्न नहीं पूछे जा सकते?

भाषाओं के प्रश्नपत्रों में आजकल अपठित गद्यांश व पद्यांश पर्याप्त मात्रा में होते हैं अपठित गद्यांश अथवा पद्यांश पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तरों के माध्यम से न केवल परीक्षार्थी का मूल्यांकन होता है अपितु पर्याप्त जानकारी का प्रेषण भी परोक्ष रूप में हो जाता है। प्रश्नों का सही उत्तर देने के लिए एक परीक्षार्थी गद्यांश अथवा पद्यांश को जितने ध्यान से पढ़ता है उतने ध्यान से तो वह अपनी पाठ्य पुस्तकों को भी नहीं पढ़ता अतः इन गद्यांशों अथवा पद्यांशों के माध्यम से उसे न केवल शिक्षाप्रद एवं प्रेरक कथा-कहानियों से अवगत कराया जा सकता है अपितु विभिन्न विषयों यथा विज्ञान, भूगोल, इतिहास, राजनीति, कला एवं संस्कृति, धर्म व दर्शन, पर्यावरण संरक्षण आदि का ज्ञान भी सुगमता से दिया जा सकता है।

विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा प्रदान करने के लिए इस प्रकार के प्रश्नपत्र अत्यंत सहायक हो सकते हैं अतः अपठित बोध के लिए केवल ऐसे गद्यांशों व पद्यांशों का चुनाव किया जाना चाहिए जो हर दृष्टि से उपयोगी हों. उनकी भाषा बेशक सरल हो लेकिन वे हों उपयोगी जानकारी से ओतप्रोत। गद्यांशों का चयन अच्छे लेखकों के संस्मरणों, निबंधों, कहानियों अथवा अन्य अच्छी रचनाओं से ही किया जाना चाहिए। पद्यांशों का चयन भी अच्छे कवियों की श्रेष्ठ रचनाओं से ही किया जाना अनिवार्य है। ये भी ज़रूरी है कि हर पद्यांश किसी एक भाव अथवा विचार को प्रकट करने में सक्षम हो क्योंकि अधूरी कविता अथवा पद्यांश को पूरी तरह से समझना मुश्किल होता है।

जिन प्रश्नों के उत्तर विवादास्पद हों अथवा जिनके कई संभावित उत्तर हों ऐसे प्रश्नों से भी बचा जाना चाहिए। इससे विद्यार्थी का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता। बहुविकल्पात्मक प्रश्नों के विकल्प भी सोच-समझकर तैयार करने चाहिएँ। यदि बहुविकल्पात्मक प्रश्नों के विकल्पों में अंतर स्पष्ट नहीं होगा तो भी उनका सही उत्तर देने में परेशानी होना स्वाभाविक है। बहुविकल्पात्मक प्रश्नों की संख्या भी सीमित होनी चाहिए क्योंकि कई बार सही उत्तर मालूम न होने पर भी परीक्षार्थी अथवा विद्यार्थी अंदाज़े से किसी भी विकल्प को चुन लेते हैं मात्रा संयोग से कुछ प्रश्नों के उत्तर ठीक हो जाते हैं. प्रश्नों के उत्तर कम या अधिक ठीक हानेे की दोनों ही संभावनाएँ बनी रहती हैं. अतः संक्षिप्त उत्तर वाले वस्तुनिष्ठ प्रश्न अधिक पूछे जाने चाहिएँ। अपठित गद्यांश व पद्यांश से बहुविकल्पात्मक प्रश्न देना तो अधिक सही नहीं लगता। अपठित गद्यांश व पद्यांश से तो केवल संक्षिप्त उत्तर वाले वस्तुनिष्ठ प्रश्न ही पूछे जाने चाहिएँ।

सीताराम गुप्ता

सीता राम गुप्ता

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