मुक्तक/दोहा

मुक्तक

कभी न झुकनेवाले करो वक्त का एहसास
दर्प दिखाने वाले का हो हो जाता विनाश
वक्त की आँधी में बड़े वृक्ष उजड़ जाते हैं
वक्त को समझनेवाली नहीं उजड़ती घास

खुशियाँ सबको बाँटूं गम ले लूं उधार
तमस मिटाने के लिए खुद जलूं सौ बार
देश के काम आ जाये गर जिन्दगी
मेरे जीवन का मुझपर होगा बड़ा उपकार

प्यार का हो सम्पति मुझे ज्ञान हो मेरा साथी
दोस्ती हो ऐसे जैसे दीया और बाती
इंसानियत का बीज बोऊँ घर-आँगन में
कुछ ऐसा कर दिखाऊँ गर्व करे ये माटी

— दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।