कहानी

संस्मरण : लगन

मैं दोपहर में नहीं सोती, क्यों कि सोने के लिए रात काफी होती है! अगर कभी मैं दिन में सो जाऊं, तो घर में सभी को पता चल जाता है कि मेरी तबियत जरुर नासाज़ है!आज सर में थोडा दर्द था, रात ठीक से नींद भी नहीं आई थी तो सोचा जरा झपकी ले लूँ, बदन हल्का हो जाएगा कि तभी कॉल बेल बजी! थोडा झुंझलाती हुई उठी और दरवाज़ा खोला तो एक स्मार्ट नौजवान को खड़े पाया! मैं अचानक पहचान नहीं सकी, कुछ पूछती तब तक वो पैर छूकर अन्दर आ चुका था! करीब से देखा तो एक सुखद आश्चर्य हुआ, अरे! यह तो अपना सुनील है….कितना बदलाव आ गया था सुनील में? लम्बी कद-काठी, भरा हुआ बदन, करीने से पहने बढ़िया कपडे और सलीके से काढ़े हुए घुंघराले बाल! भला पुराने सुनील वाला कोई लक्षण होता तभी तो पहचान पाती ना?

पानी पिला कर बैठने को कहा तो पहले तो उसने संकोच किया, दुबारा कहने पर एक मूढा लेकर बैठ गया!
“आजकल क्या कर रहे हो सुनील?” पूछने पर मुस्कुराते हुए उसने मिठाई का डिब्बा निकाल कर मेज़ पर रखा और बोला,” आंटी जी, सोने के बदले लोन देने वाले बैंक में नौकरी लग गयी है” फिर वो विस्तार से बताता गया कि कितनी तनख्वाह मिलती है, कितने की एल आई सी करा ली है, कितने रुपये हर माह माँ को भेजता है?, कितने रुपियों में अपना घर, खाना, कपडा सब करता है …..आदि-आदि, और मैं मन्त्र मुग्ध सी उसकी बात सुनते हुए सोच रही थी कि नन्हा सुनील अब कितना समझदार हो गया है? मन पुलकित हो गया और धुल गयी मन की सारी ग्लानि, और पिछले दस साल मेरी आँखों में चलचित्र से घूमने लगे!

सुनील को मैंने अपना नौकर या सेवक कभी नहीं समझा!वह केवल सहायक के रूप में आया था मेरे पास मेरी मदद करने!
10 साल पहले की घटना आँखों में कोंध गयी! मैं पार्क में टहल रही थी तभी एक बन्दर ने पीछे से आकर टखने में काट लिया और मुझे 14 इंजेक्शन लगवाने पड़े! जाड़ों में उसी जगह बालतोड़ हो गया जो बहुत पीढ़ादायक था, दर्द के मारे मुझसे खड़ा भी नहीं हुआ जाता था! कामवाली ने काफी मदद की, पर काम तो सारे दिन चलते ही रहते हैं घर के…..कभी सब्जी-भाजी वाला तो कभी दूधवाला या कोई मिजाजपुर्सी करने वाला! बार-बार कुण्डी खोला ही कष्टप्रद था, और चाय-पानी का इंतज़ाम! मेरी मालिन एक दिन मुझे देखने आई तो अपने साथ एक 8 वर्ष के अपने पोते को ले आई!

“बहूजी!! इसे काम पर रख लो, आपकी मदद भी हो जायेगी और यह अपनी फीस के आयक कमा भी लेगा, यह पढना चाहता है लेकिन घरवाले पैसे ना होने के कारण इसे दुकान या होटल में काम पर लगाना चाहते हैं!आप रख लोगी तो पढलिख लेगा, आदमी बनेगा और हम सब आपको दुआ देंगे!”
मैंने पूछा,” कुछ काम वाम जानता है?”
“नहीं”
झाड़ू-पोंछा ‘….फिर संक्षिप्त उत्तर, “नहीं”
” चाय बना लेते होगे?”…वही छोटा सा उत्तर” नहीं”
मुझे लगा कि जब इसे कुछ आता, तो रख कर क्या इसका मुह देखूंगी?आँख उठा कर पतिदेव की ओर देखा तो उन्होंने इशारे से”हाँ” कहा और फिर धीरे से कान में फुसफुसा कर कहा कि” रख लो….कम से कम जो दिन में दस बार दरवाज़ा खोलना पड़ता है उसे तो कर ही देगा, और बाकी के काम भी हम सिखा देंगे”
बात जंच गयी, दुसरे दिन जब सुनील आया तो उसे फीस के लिए एडवांस रुपये देकर स्कूल में दाखिला लेने भेज दिया और कहा कि शाम को आजाना!

–सुबह कामवाली बाई आकर मेरे काम में मदद कर देती थी और दोपहर को पतिदेव और बच्चे मेरे साथ लग जाते, हाँ शाम को मुझे मदद करने को सुनील 2 घंटे को आ जाता! बोलता बहुत कम था, ज्यादातर”हाँ” या”ना” में उत्तर देता! चिकने-चुपड़े तेल लगे बालों को देवानंद स्टाइल में काढता, कमीज़ आधी नेकर में तो आधी बाहर, फटी पुरानी चप्पल पहने!

मेरे छोटे बेटे ने उसे चाय बनानी सिखाई, कैसे कप को साफ़ ट्रे में सलीके से रखकर कैसे मेहमानों को सर्व करते हैं? नाश्ता किस अलमारी में है, किस बाउल में कैसे, कितना सर्व करना है आदि सभी कुछ समझाया! सुनील हर बात को ध्यान से सुनता और एक बार में ही समझ जाता, उसके साथ ज्यादा माथापच्ची कभी नहीं करनी पढ़ी! वो मेरे छोटे बेटे कुश को अपना गुरु मानता था और उसे जो भी जानकारी चाहिए होती वो धीरे से कुश से ही पूछता था!जब काम निबट जाता तो कुश को ध्यान से पढ़ते हुए देखता! उसे पढाई में ध्यान लगते देख मैंने उस से कहा” कल से तुम अपनी कॉपी-किताब ले आया करो, जब खाली होते हो तो यहीं पढ़ लिया करो….जो समझ में नहीं आये वो हम में से किसी से पूछ लेना”
अगले दिन से वो कॉपी-किताब लाने लगा, और मैंने गौर किया कि अब उसके हाथ बड़ी फुर्ती से चलते और मात्र एक घंटे में अपना सारा काम निबटा कर वो ड्राइंग रूम के कालीन पर बैठ बड़े ध्यान से अपना स्कूल का होमवर्क करता! कुछ पूछना होता तो कुश से धीरे से जाकर पूछता! कुश घर में सबसे छोटा है, अब सुनील को पढ़ने में उसे”बड़े” होने का सुखद अहसास होता और वो उसे अंग्रेजी, गणित व् साइंस रोज़ ही पढाने लगा! अपनी पुरानी कॉपी उसे दे देता! पेंसिल, पेन, रबड़, ज्योमेट्री बॉक्स भी सुनील को दे डाला और एक दिन अपनी 2 टी-शर्ट भी सुनील को देते हुए बोला”सुनील स्कूल की युनिफोर्म, घर में पहन कर गन्दी मत किया करो, कल से ये कपडे पहन कर आया करो”मैं तो बेटे को देखती रह गयी! माँ से एक बार भी नहीं पूछा और अपनी पसंद के कपडे दे दिए? मुझे अपनी ओर देखते हुए कुश ने खुद ही जवाब दिया” मम्मी, वार्डरोब में पड़ी हुई बेकार छोटी हो रही थीं, अब इसके काम तो आएँगी ना”? क्या कह सकती थी अपने दानवीर बेटे को? मुझे कुश की सोच पर गुस्सा नहीं बल्कि गर्व ही महसूस हुआ!

दुसरे हफ्ते से मैंने गौर किया कि सिर्फ काम और पढाई में ही नहीं, अब पहहने-ओढने में भी सुनील कुश को फॉलो कर रहा है, बातचीत में भी यहाँ तक कि अब बाल भी कुश की तरह बीच में मांग निकाल कर बनता! कपडे तो कुश के पहनता ही था, अंग्रेजी के शब्द भी कुश की तरह स्तेमाल करता! घर में जो मेहमान आते उन्हें लगता कि हमारे घर (गाँव ) आया कोई रिश्तेदार का बच्चा है जो यहाँ रहकर पढ़ रहा है!
पंद्रह दिन में मेरा बालतोड़ फूट गया और मवाद निकल जाने से पीड़ा भी कम हो गयी, मल्लम-पट्टी सुचारू रूप से चल रही थी और एक माह में मैं बिलकुल भली-चंगी हो गयी!इधर इन पंद्रह दिनों में सुनील ने रसोई का काफी काम सीख लिया था, शाम को टमाटर का सूप बनाना, आटा गूंधना, सब्जी धोकर काटना और कुश जैसी मसालेदार चाय बनाना!काम निबटा कर वो पढने में तल्लीन हो जाता और जब थक जाता तो वही कालीन पर सो जाता! थोडा मुखर भी हो गया था और मुझे बात भी करने लगा था!

जब बच्चे हॉस्टल जाने लगे तो एक बार मेरे मन में आया कि अब तो बस हम 2 प्राणी ही रह गए हैं, अब सुनील की जरुरत नहीं है उसे हटा दें, लेकिन तभी ज़मीर ने धिक्कारा “जब अपनी जरुरत थी तो रख लिया और जब उसे पैसे की जरुरत है तो हटाने लगी”…… उसे हटाया तो नहीं पर रसोई के काम मैं खुद करने लगी यह सोच कर कि मेरी आदत ना बिगड़ जाए! सुनील तब 6th की परीक्षा दे रहा था! इम्तेहान के दिनों में मैने आने को मना कर दिया! परीक्षा समाप्त होने के दुसरे दिन से वो फिर आने लगा! मैंने उसे कार, स्कूटर की और छत की सफाई का काम सौंप रखा था किन्तु वो आते ही रसोई के काम में लग जाता!

मई में नतीजा निकला तो वह अंकतालिका लेकर आया, नंबर ठीक-ठाक थे मैंने उत्साह बढ़ने के लिए उसे 50 का नोट और एक जोड़ी कपडे दिए तो उसके चेहरे पर जो चमक दिखी उसके आगे दुनिया की सारी खुशियाँ कम लगी! गर्मी की छुट्टियाँ होने के कारण मेरी सास, ननद, नंदोई सभी थे और सभी ने उसे ईनाम के रूप में 20-20 रुपये दिए और आगे और भी अच्छे अंक लाने को कहा!

अब तो सुनील की कल्पना को पर लगने लगे, वो क्लास-दर-क्लास और भी अच्छे अंक लाता, ईनाम पाता और फिर नए उत्साह से जुट जाता पढाई में!अब सुनील पहलेवाला गुमसुम रहने वाला बच्चा नहीं रहा, हर रोज़ नए सवाल के साथ हाज़िर रहता! मेरे पतिदेव को पढ़ाने और पढाये हुए पाठ पर खाली वक़्त में चर्चा करने और प्रश्न पूछने की जबरदस्त बीमारी है, मोहल्ले के बच्चे उनके सामने आने से घबराते थे पर सुनील निसंकोच उनसे गणित, विज्ञान अंग्रेजी पढता और मुझसे हिंदी, सोशल! इसी तरह वह 10 th की परीक्षा 54% नम्बरों से पास कर गया! अब उसे ट्यूशन लगानी थी तो उसने खाली समय में किटी-पार्टी, बर्थडे पार्टी में नाश्ता बनाना शरू कर दिया, वो मुझसे समोसे, भठूरे, खस्ता कचौड़ी आदि सभी प्रकार का नाश्ता बनाना सीख गया था, गुलाब जामुन भी, तो अतिरिक्त कमाई कर अपनी ट्यूशन का खर्चा निकालता, साथ ही 1 st से लेकर 6th तक के अपने मोहल्ले के बच्चों को पढ़ा कर माँ को भी मदद करने लगा था!अब उसका काम और पढाई बढ़ गयी थी तो मैंने उससे कहा कि बस शनिवार या इतवार को आकर थोड़ी मदद कर जाया करे, कमाई तो वो करने ही लगा था अब उसे पैसे से ज्यादा समय की जरुरत थी!

सुनील अब खाना बनाने में एक्सपर्ट हो गया था, शादी में केटरिंग ग्रुप से जुड़ गया था, सिर्फ मुल्तानी छोले छोड़कर वो साउथ इंडियन, चाइनीस, नार्थ-इंडियन सभी तरह का खाना एक बार में 25-30 लोगों का बड़े मज़े में अकेले ही बना लेता तो शादी के सीज़न में खूब कमाई होती! अब वो महीने में एक बार आता था घर अपने सारे हालचाल बताने और हमारे घर में दीमक लग गयी थी किवाड़ों में तो उनमे दीमक का तेल डालने!अब वो मुझे खाना बेहतर बनाने के टिप्स देने लगा था और मैं सोचती …..गुरु, गुड ही रहे, चेला चीनी हो गया?

ना जाने उसने कब मेरे पतिदेव से जानकारी ले ली कि मेरा जन्मदिन शरद-पूर्णिमा को पड़ता है! उस वर्ष बेटा पहले बार अमेरिका में पढाई करने गया था और उसके दूर जाने से मैं बहुत चिंतित थी सो मैंने अपने जन्मदिन पर पार्टी ना करके कीर्तन का कार्यक्रम रखा और सुनील को मदद के लिए बुला भेजा!मैं तो प्रसाद बना कर मंदिर सजाने में व्यस्त हो गयी और मुझे जरा भी पता नहीं चला कि कब उसने पार्टी की तैयारी भी कर ली?गिट्स के गुलाब-जामुन के 2 पेकेट खरीद लाया था तो फटाफट गुलाबजामुन बना डाले और एक रात पूर्व आकर दाल-उड़द और चावल भिगो, दही जमा गया था, नारियल की स्वादिष्ट चटनी, सांभर और दोसे का इंतज़ाम उसने उस वक़्त कर डाला जब मैं अपनी महिला मित्रों संग भजन-कीर्तन में मग्न थी! जैसे ही आरती समाप्त हुई उसने सभी को रोक लिया कि बिना खाए कोई नहीं जाएगा और फिर मेरे जन्मदिन की जोरदार पार्टी दी जो शायद पहले कभी नहीं हुई थी और वो आज भी मेरे लिए यादगार पार्टी है!

अब वो बी.कॉम. के प्रथम वर्ष में था और मेरे पास आकर बोला कि,”आंटी जी, शादी की पार्टी में पैसे तो अच्छे मिलते हैं पर सुबह 7 बजे बुला लेते हैं और रात जबतक सबका खाना-पीना नहीं हो जाता और सामन समेटने में रात के 2 बज जाते है तो मैं इतना थक जाता हूँ कि पढाई नहीं कर पाता और यह काम स्थाई भी नहीं, सिर्फ सहालत में होता है!” मैंने पूछा तो फिर वो करना क्या चाहता है तो विस्तार से बताने लगा,” मेन मार्किट में एक छोटी सी खोली, बच्चों के स्कूल के सामने ले ली है किराए पर और वहां चाय-नाश्ते की दूकान लगाना चाहता है!उसे बस कुछ सामन चाह्हिये! मैंने अपने पास से गैस का सिंगल चूल्हा, एक एल्युमीनियम का भगौना, 10-12 पुराने कप्स और चाय-चीनी के लिए डिब्बे दे दिए और 500 रुपये सामान के लिए दे दिए! दूकान उसकी चल निकली! दिन में दुकानों को चाय-पकौड़े सर्व करता और लंच-ब्रेक में स्कूल के बच्चों और स्टाफ को!इसी तरह दूकान चलाते हुए उसने बी.कॉम पूरा कर लिया!

इसके बाद सुनील ने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा! दूकान के काम के साथ बी.कॉम.पूरा किया और एम.कॉम में दाखिला लिया! वो जब भी कोई परीक्षा पास करता तो खुश होकर मेरे लिए मिठाई अवश्य लेकर आता! मुझे अक्सर अपनी पिछली सोच पर ग्लानि होती थी कि अगर अविश्वास के चलते उसे अपने घर ना रखती तो आज उसके चेहरे की ख़ुशी व् चमक देखने से वंचित ना रहती?
दूकान से उसने इतना पैसा एकत्र कर लिया था कि अपनी बहन की शादी खूब धूमधाम से बेंक्वेटहाल में की!

बहन की शादी का कार्ड लेकर आया तो मैंने उसकी बहन के लिए एक बनारसी साड़ी और एक लिफाफा दिया, तो थोडा उदास होकर बोला,” आप नही आओगी आंटी जी?” उसकी उदासी देखि नहीं गयी और शाम को शादी में गयी तो उसके घरवालो ने मेरा ऐसा भव्य स्वागत किया जैसे कि मैं कोई वी.आई.पी.होऊं!

सुनील हफ्ते दो हफ्ते में फोन करके हालचाल अवश्य पूछ लेता था और यह भी कि कोई काम हो तो मैं उसे जरुर बुला लूँ!
और जब चार वर्ष पूर्व 2010 में विकट बाढ़ आई और आधा मुरादाबाद बाढ़ की चपेट में आया तो मैं बहुत घबरा गयी क्यों कि मेरा घर ग्राउंड फ्लोर पर है, लग रहा था कि कभी भी पानी घर के दरवाज़े पर आते ही लाइट काट दी जायेगी! पतिदेव अपने अस्पताल में थे और मैं घर में अकेली…..जल्दी से पीने का पानी कंडाल में भरा क्यों कि बिना खाना खाए काफी देर रहा जा सकता है पर बिना पानी के नहीं! तभी कॉल बेल बजी! दरवाज़ा खोला तो देखा सुनील काली चमचमाती बाइक पर अपने 2 दोस्तों के साथ रात के ग्यारह बजे हाज़िर है! तीनो ने मिलकर फ़टाफ़ट जरुरत का सारा सामान ऊपर की मंजिल तक पहुँचाया! घबराहट में मैं खाना भी नहीं बना सकी थी तो सुनील बोला, “आंटी जी, आप अपने कपडे और बेंक की पासबुक आदि जरुरी सामन पैक कर लो ऊपर ले जाने को, खाना हम बना देते हैं” मैंने जब तक सामन पैक किया तब तक खाना बना चुका था! अपने दोस्तों को कॉलोनी के और लोगों की मदद करने को कह कर मुझे कहा कि अभी आता हूँ! वापिस आया तो कुछ बिस्कुट के पैकेट, कुछ नमकीन के, दो ब्राउन-ब्रेड और एक लीटर ढूध लाया! उसे मालुम था कि ये बिना चाय के नहीं रहते!सच कहती हूँ उस क्षण सुनील मुझे किसी देवदूत की तरह लगा!

आज वही संकोची बच्चा जो अब चौबीस वर्ष का हो चुका बलिष्ट जवान इतना विनम्रता से बता रहा है कि उसकी जॉब” मन्निकम-गोल्ड-लोन” बैंक में 20, 000/ rs के मासिक वेतन में लग कर क्या से क्या बन गया! बातचीत में परिपक्वता और मृदुलता, पहनने ओढने में, उठने-बैठने में शालीनता! लोग गलत ही तो उसे मेरा तीसरा बेटा नहीं समझते!

मैं अतीत और वर्तमान की तुलना में मग्न थी तभी वो बोला,” आंटी जी, कुश भैया ने कहा था कि 30 वर्ष तक मैं सभी कम्पीटीशन में बैठ सकता हूँ, आप भैया को बता देना कि मैंने उनकी बात गाँठ बाँध ली है…कई बैंक के फॉर्म, प्राशासनिक सेवा के फॉर्म भरे हैं मैंने और पी.एच.डी के लिए भी, नेट के लिए भी …मैं अपनी तरफ से कोई कसर नहीं रखूँगा आगे ईश्वर की इच्छा” फिर पैर छूकर जाने के लिए इजाज़त मांग कर वो घर चला गया ….मैं उसे जाते हुए देख रही थी और मेरे कानो में पिताजी के कहे वचन गूँज रहे थे जो वो अक्सर कहा करते थे —-
“बच्चों में प्रतिभा तो जन्मजात होती है बस जरुरत होती है उसे पहचान कर अनुकूल अवसर प्रदान करने की और प्रोत्साहन देते रहने की, बच्चे के मन की अगन की और कुछ बन जाने की इच्छा और लगन की”

पूर्णिमा शर्मा

नाम--पूर्णिमा शर्मा पिता का नाम--श्री राजीव लोचन शर्मा माता का नाम-- श्रीमती राजकुमारी शर्मा शिक्षा--एम ए (हिंदी ),एम एड जन्म--3 अक्टूबर 1952 पता- बी-150,जिगर कॉलोनी,मुरादाबाद (यू पी ) मेल आई डी-- Jun 12 कविता और कहानी लिखने का शौक बचपन से रहा ! कोलेज मैगजीन में प्रकाशित होने के अलावा एक साझा लघुकथा संग्रह अभी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है ,"मुट्ठी भर अक्षर " नाम से !