गीत/नवगीत

गीत : अपने भीतर, तू निरंतर, लौ जला ईमान की

अपने भीतर, तू निरंतर, लौ जला ईमान की
तम के बदल भी छंटेंगे, यादकर भगवान की
अपने भीतर तू निरंतर …………………..

है खुदा के नूर से ही, रौशनी संसार में
वो तेरी कश्ती संभाले, जब घिरे मंझधार में
हुक्म उसका ही चले, औकात क्या तूफ़ान की
अपने भीतर तू निरंतर …………………..

माटी के हम सब खिलोने, खाक जग की छानते
टूटना है कब, कहाँ, क्यों, ये भी हम ना जानते
सब जगह है खेल उसका, शान क्या भगवान् की
अपने भीतर तू निरंतर ………………….

दींन-दुखियों की सदा तुम, झोलियाँ भरते रहो
जिंदगानी चार दिन की, नेकियाँ करते रहो
नेकियाँ रह जाएँगी, निर्धन की और धनवान की
अपने भीतर तू निरंतर …………………

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

One thought on “गीत : अपने भीतर, तू निरंतर, लौ जला ईमान की

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    वाह
    सुंदर रचना

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