कविता

कविता

अच्छे हैं इंसान यहां सब किसीको कम ना आँको तुम
औरों को बुरा कहने से पहले ज़रा खुद में झाँको तुम

हालात बना देते हैं होता जन्म से बुरा कोई नहीं
कौन सी ऐसी आँख है जो हंसने से पहले रोई नहीं

नेकी और बदी में बस थोड़ी सी दूरी होती है
गलत काम के पीछे अक्सर कुछ मजबूरी होती है

रोटी और उसूलों की जंग यहाँ सदियों से जारी है
लेकिन आग पेट की सारे आदर्शों पर भारी है

अपनी कमियों को तो दुनिया की नज़रों से छुपाते हैं
लेकिन किसी की एक भूल पर न्यायाधीश बन जाते हैं

किसी को मुजरिम कहने का तुमको कोई अधिकार नहीं
वो ही पहला पत्थर मारे जो खुद गुनाहगार नहीं

बुरा ना करो बुरा ना कहो तुम अपना दिल साफ करो
माफ जैसे करते खुद को औरों को भी माफ करो

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- rajivmalhotra73@gmail.com

One thought on “कविता

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    वाह
    बेजोड़

Comments are closed.