उपन्यास अंश

अधूरी कहानी: अध्याय-7: वीरू तेजा

वीरू तेजा, उम्र पच्चीस के आसपास, स्टाइलिस अपने बैड पर लेटा हुआ था वह इधर-उधर करवट बदल रहा था इससे ऐसा लग रहा था कि उसे नींद नहीं आ रही थी।
वह बेड से उठा और थोड़ा इधर-उधर देखा और फिर से बेड पर बैठ गया और मैगजीन उठाकर लड़कियों की तस्वीरें देखने लगा और पढ़ने लगा।वह लड़कियों की अर्धनग्न तस्वीरें देख ही रहा था कि अचानक ‘घप्प’ की आवाज आयी वह चौक गया वह मैगजीन बगल में रखकर सहमें हुए कदमों से बेड से नीचे उतर गया।
यह कैसी आवाज, पहले तो कभी नहीं आयी ऐसी आवाज और यह आवाज सुनकर मैं चौक क्यूँ गया या हो सकता है अपने मन की स्थिति पहले से ही अच्छी न हो वह ये सब मन ही मन सोचने लगा।
धीरे-धीरे वह इधर-उधर देखते हुए बेडरूम के दरवाजे के पास आ गया उसने दरवाजे की कुंडी खोली और धीरे से झांककर बाहर देखा। पूरे घर में देखने के बाद वीरू ने हाॅल में प्रवेश किया हाॅल में अंधेरा था उसने लाइट आॅन की और चारों-तरफ देखा कुछ भी तो नहीं सब कुछ अपनी जगह रखा था फिर उसने हाॅल की लाइट बंद की और किचन की तरफ बढ़ा ।
किचन की लाइट आॅन की और इधर-उधर ऑजर दौड़ायी वहां भी सब कुछ ठीक था अब उसका डर काफी कम हो गया था।
वह पलटने ही वाला था कि सींक में रखी किसी चीज ने उसा ध्यान आकर्षित किया वह देखते ही वह डर से थर-थर कांपने लगा डर के मारे इतनी ठंडे में भी उसे पसीना आ गया उसके सामने सींक में एक खून से सना मांस का टुकड़ा रखा हुआ था।उसने एक भी टल न गवाते हुए बेडरूम की तरफ दौड़ा और अंदर से कुंडी बंद कर ली।

दयाल कुशवाह

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