कवितापद्य साहित्य

जीवन पतंग

जीवन की पतंग

पतंग के मंजे से कटती ऊँगली से

बहते रक्त की धार में

बचपन की निकल आई यादों के साथ

आज हो गए जैसे दो दो हाथ!

बचपन कि जिसे बहुत पीछे छोड़ दिया

जैसे फूलों के पथ से किसी ने काँटों में मोड़ दिया

विगत समय आभास नहीं है उसी सहजता और सरलता का

ऐसा लगता है चंचलता ने कबका नाता तोड़ दिया

मंजा जैसे सुलझा तो और मन उलझा

लगने लगा लौट जाऊं फिर उसी बचपन में

खिलखिलाते मौसम में मुस्कुराते दर्पण में

पर फिर जीवन की पतंग का ध्यान आया

और कदम ठिठक गए,

इसे उड़ना होगा, बढ़ना होगा,

डोर जमीन पर और सर अम्बर की और करना होगा!!

सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!