गीत/नवगीत

नवगीत

अंदर ही अंदर दम घुटता है
बाहर जाने से मन डरता है
कोई शिकारी है इंतजार में
ये सोच के मन कांप उठता है
और डर डर के एक दिन
हम मर जाते है…. हम मर जाते है
हमको आगे आना होगा
तभी अपराध मुक्त भारत होगा

अँधेरे में सननाहटे है
रोशनी में चिललाहटे
कातिल कौन है नही पता
एक दूसरे से है हम खौफजदा
अपराध को चौराहे पर लाना होगा
इस पर काबू हमें पाना होगा
हमको आगे आना होगा
अपराध मुक्त भारत होगा

अपनी आँखों के सामने
अपराध होते न देखो
अपना नही है जाने दो
मन में ऐसा न सोचो
आज कोई और है
कल को कोई तुम्हारा होगा
सोचोगे पहले ही आवाज उठा लेते
तो आज ये सब न होता
हमको आगे आना होगा
अपराध मुक्त भारत होगा

  1. — विकाश सक्सेना