गीत/नवगीत

तुम बिन ये जीवन क्या जीवन…

तुम बिन ये जीवन क्या जीवन, बिखरा सा घर सूना आंगन।
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन॥

खामोशी की चादर ओढे, सोया है जैसे हर कोना।
जीवन लगता है जैसे हो, बिन चाबी का कोई खिलौना॥
हर सुबहा अलसाई सी है, बीते शाम सिन्दूरी बे मन…
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन…

प्यार की मीठी नोक झोंक बिन, जीवन में उल्लास कहां।
बिन तेरे बेअर्थ सा जीवन, हास और परिहास कहां॥
कुछ दिन में अहसास हो गया, तुम बिन ये जीवन क्या जीवन….
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन……

होते हो जब पास, कहां आभास खास ये होता है।
सब सामान्य सा लगता है जो होता है सो होता है॥
तुम हो तो जीवन मधुबन है, बिना तुम्हारे उजडा उपवन……
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन……

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.