गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

कितना मुझको रुला गया कोई,
याद उनकी दिला गया कोई।

आज मुस्काये हम भी ख्वाबों में,
दिल की बस्ती बसा गया कोई।

सारे मंज़र ही ले उठे करवट,
गांव से जब भी आ गया कोई।

लूट कर चैन उम्र भर के लिए
अश्क़ मुझको थमा गया कोई।

फ़िर पलटकर कभी नहीं देखा,
सारे रिश्ते मिटा गया कोई।

दीप ’शुभदा’ बुझे न आशा का,
इसको अपना जला गया कोई।

— शुभदा बाजपेई