लघुकथा

दौड़ का अंत

रविवार का दिन था प्रीती अपनी सहेली रीना से मिलने उसके घर पहुंची |अभी वो दरवाजे के बाहर ही थी की एक कुतिया वहां से गुजर रही, एक तेज रफ़्तार के मोटर बाइक के पीछे, भोंकते हुए भागने लगी और वो तब तक भोंकती रही, जब तक उसने रफ़्तार कम् नहीं कर ली | प्रीती ये सब देख हैरान हुई और उस ने रीना से इस बात का कारण पूछा रीना बोली ” ये हमारे मोहल्ले की बेघर कुतिया जिम्मी है सड़को पर ही रहती है| घर घर जा कर दो टुकड़े रोटी के खा कर सारे मोहल्ले की चौकीदारी करती है | एक दिन एक लड़का अपनी कार बहुत तेज रफ़्तार में चलाते हुए, वहां से तूफ़ान की तरह गुजरा और जिम्मी के दो बच्चो को कुचल कर, वहां से निकल गया | जिम्मी भोंकती हुई, पागलो की तरह उसकी कार के पीछे भागी।उसके बच्चे जो कुछ मिनट पहले जिन्दा थे ,उस इंसान की लापरवाही वजय से मोत के मुँह जा चुके थे। चाहे जानवर है, पर माँ है, जब भी कोई तेज रफ़्तार वाला वाहन वहां से गुजरता है ये उसके पीछे इसी तरह भोंकते हुए भागती है।”

प्रीती दुखी मन से जिम्मी की और देखने लगी और इंसानो की लापरवाही के कारन ,प्रति दिन हो रही सड़क दुर्घटनाओं के बारे में सोचने लगी | जिन के कारन न जाने कितने लोग मौत की आगोश में चले जाते है. कितने लोग अपाहिज हो जाते है,जाने कितने परिवार उजड़ जाते है और अपनों से बिछुड़ने दुःख सहते है|आज की ही खबर थी, एक शराबी ट्रक ड्रईवर की वजय से,स्कूल वैन दुर्घटना ग्रस्त होने के कारन दस बच्चो की मौत हो गयी और बाकि हस्पताल में मौत से जूझ रहे है। इस खबर से सीमा की रूह तक कांप गयी थी | उसे जिम्मी का दुःख भी महसूस हो रहा था | तबी जिम्मी फिर से,एक तेज रफ़्तार से गुजरने वाले वाहन के पीछे,जोर जोर से भोंकते हुए भागने लगी मानो जैसे वो बेजुबान जानवर,उस इंसान को समझा रही हो ” अरे इंसान होश में आ,संभल जा,अपने साथ औरो की जान खतरे में डाले,अपनी राह में लाशे बिछाता ,अँधा धुंध कहाँ भागे जा रहा है,कहा पहुंचना है तुम्हे और इस दौड़ का अंत क्या है ?”

2 thoughts on “दौड़ का अंत

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मंजीत ,बहुत अच्छी कहानी है , शाएद लोगों को समझ आ जाए कि इस के किया अर्थ हैं .

    • मनजीत कौर

      बहुत शुक्रिया भाई साहब

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