कविता

तुम भी तो यही कहते थे

फिज़ाओं में आज नमी -सी है ..
इन्हें भी एहसास है शायद मेरी उदासी-का
जो गहरी पसरी है मेरे भीतर …

ये रिमझिम बरसता पानी …
जैसे मौसम भी भावुक हो रहा हो मेरे साथ
इस भावुकता ,इस नमी का क्या है रिश्ता मुझसे ..
जब पूछा तो जवाब दिया इन हवाओं ने …

जब तुम मुस्कुराती हो तो मुस्कुराते हैं ये फूल ,
खिलती हैं ये बहारें ….
जो तुम हो उदास,तो उदास हैं सब नज़ारे ….

ये सुन मन मुस्कुरा उठा ,
फिर तेरी याद का गीत गुनगुना उठा …
याद आ गए तुम फिर देखो क्यूंकि ……

तुम भी तो यही कहते थे …
तुम भी तो यही कहते थे …. !!

मीना सूद 

मीना सूद

नाम - मीना सूद (मीनू नाम से लिखती हूँ) संप्रति - स्वतंत्र लेखन, देश के प्रतिष्ठित काव्य- संग्रहों, समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। प्रकाशित पुस्तकें - 1 (कृति, मेरी अभिव्यक्ति) E mail - mnsd111@gmail.com