कविता

दो बूंद अश्रु के मेरी आंखों से भी बहेंगे

बस दो बूंद अश्रु के
मेरी आंखों से भी बहेंगे
छिन गये घर के चिराग जिनके
उनके गम को क्या कहेंगे
सिने पर पडा पत्थर हैं
नीत झर – झर नीर बहेंगे
सूना आंगन सूनी कोख
किस पर ममता नेह भरेंगे
मां बिलखे बाबा निढाल
कैसे अब लाल बिन रहेंगे
छिन गये सहारे जिनके
कैसे खाली मन धीर धरेंगे
लुट गये सुहाग जिनके
वही हृदय यह पीर सहेंगे
राष्ट्र रक्षा की खातिर
जिन वीरों ने प्राण गवाए
उन वीरों को शत शत नमन करेंगे
बस दो बूंद अश्रु के….
मेरी आंखो से भी बहेंगे

— मधुर परिहार