लघुकथा

बेरंग जीवन

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शॉपिंग सेंटर में सीमा की नजर एक औरत पर पड़ी जो उसे जानी पहचानी सी लग रही थी उसके चहरे पर उदासी थी और उसने बहुत सादा पहनावा पहन रखा था. उसे गौर से देखने पर सीमा को लगा, कि ये तो उसकी सहेली नेहा है पर नेहा तो कॉलेज में सब से सुन्दर और जिन्दा दिल लड़की हुआ थी और जीवन के प्रति उसका प्यारा नज़रिया किसी भी बेरंग तस्वीर में रंग भर जाता था। पर आज तो वो खुद बेरंग और बुझी हुई लग रही थी।

सीमा नजदीक जा कर उसे मिली उसकी इस हालत के बारे में पूछा, तो वो सिसक सिसक कर रोने लगी. जैसे किसी ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो और वह अपनी आप बीती बताने लगी ” पांच साल पहले, मेरी शादी हुई थी.. मेरे दो बच्चे हुए हमारा जीवन सुख से गुजर रहा था पर मेरे पति की अचानक कैंसर जैसी नामुराद बीमारी के कारन मृत्यु हो गयी, पति के जाने से जीवन में अंधकार-सा छा गया ..बच्चो का मासूम बचपन पिता के साये से महरूम हो गया एक तरफ तो पति के जाने का सदमा सह रही हु, दूसरा सास ससुर नन्दो का बुरा वर्ताव भी सह रही हूं | सास बात-बात पर मनहूस होने का ताना देती हुई कहती है, हमारे बेटे को खा गई. किसी भी रीती रिवाज़, दिन त्यौहार, शगुन पर मुझे पीछे कर दिया जाता है ।बस अपने पति की याद को दिल में बसाये अपने दोनों बच्चो को पालने के लिए जी रही हूँ ।”

ये सब सुन कर सीमा सोच में पड़ गई , उसे अपनी माँ याद आ गयी। आज से बीस साल पहले जब उसके पिता का स्वर्गवास हो गया था तो उसकी माँ के साथ भी ठीक इसी तरह का वर्ताव किया जाता था, जिसे वो सारा जीवन सहती रही | सफ़ेद कपडे पहने , बेरंग जीवन जीती रही| एक ज़माना था जब सती प्रथा के नाम पर विधवा औरत को पति की चिता के साथ ही जिन्दा जला दिया जाता था. कितनी हैवानी सोच थी वो | चाहे वो प्रथा बंद कर दी गयी है और धीरे-धीरे लोगो की सोच भी बदली, पर कुछ लोगो की सोच अभी भी वैसी ही है. अब फर्क सिर्फ इतना है की ऐसी सोच के मालिक अब औरत को जलाते तो नहीं है, पर अपनी गलत सोच के जरिये उसे मानसिक दुःख जरूर देते है | वहम-भरमो और रीति-रिवाज़ों के नाम पर कब तक ऐसे अत्याचार चलते रहेंगे ? जीवन है तो मृत्यु भी हर इंसान की निश्चित है, मगर पति की मौत के लिए पत्नी को जिम्मेदार ठहराना या उसको मनहूस समझना, क्या ये सोच सही है ?

2 thoughts on “बेरंग जीवन

  • यह दकिअनूसी सोच ही हमारे समाज का बेडा गरक कर रही है .

    • मनजीत कौर

      आप ने सही कहा भाई साहब पता नहीं इंसान ऐसी दकियानूसी सोचों के चक्कर में, कब तक इंसानियत की बलि चढ़ाता रहेगा । कहानी पसंद करने और विचार देने के लिए आप का बहुत शुक्रिया जी

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