कवितापद्य साहित्य

~इंसानियत जगा रहे~

हमें हैरान-परेशान देख
एक व्यक्ति ने हमसे पूछा
क्या खोज रही है आप
हमने कहा ही था
कि इंसानियत
वह सुन सकपकाया
हमें तरेर कर देखा
शायद पागल समझ बैठा
थोड़ा हैरान हो
बोला बड़ी अजीब हो
यहाँ इंसानों की भीड़ है भरी
और तुम्हे इंसानियत ही नहीं दिखी|

हमने कहा हा नहीं!
कही नहीं दिखी
वह बड़बड़ाता हुआ
मुड़-मुड़कर बार-बार
अजीब निगाहों से
देखता हुआ चला गया|

क्या आपको भी
हम पागल दिखते है
आप ही बताओ
किसी असहाय को
असहाय ही छोड़ चल देना
क्या इंसानियत होती है
सड़क पर घिसटते हुए
आदमी को देख
मुहं फेर चल देना
क्या इंसानियत होती है
भीख मागते इंसानों के मुहं पर ही
अशब्द कह उसे
बिना कुछ दिए चल देना
क्या इंसानियत होती है
मदद के लिए पुकार रहे
कातर ध्वनि को
अनसुनी कर देना
क्या इंसानियत होती है|

आप ही बता दो
क्या इंसान ऐसे होते है
अब तो हम हतप्रभ है
यह देख कि हम जिसे
बाहर खोजना चाह रहे थे
वह तो अपने अंदर ही
नहीं पा रहे अतः
दुसरे को कोसना छोड़ कर
अब खुद में ही थोड़ी
इंसानियत जगा रहे है |
आप सब भी मदद करेंगे न !!
<<<सविता मिश्रा >>>

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

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