कविता

छोटा सा दीपक

छोटा सा दीपक हूँ, कहते हैं घर का चिराग़

मुझसे ही जलती है, घर के उम्मीदों की आग

 

नन्हीं सी है लौ मेरी

लेकिन हैं आशाऐं ढेर

रहें जो आशाऐं अधूरी

या लगती थोड़ी देर

मुझे कोसने लगते हैं

मुझे लेते हैं घेर

बुझा मुझे देते हैं, जब जाता है सूरज जाग

छोटा सा दीपक हूँ, कहते हैं घर का चिराग़

मुझसे ही जलती है, घर के उम्मीदों की आग

 

मैं मिट्टी का दीपक हूँ

बना आग में पककर

जलकर बना, जलता रहा

बुझ गया मैं थककर

रेशे मेरे जल चुके

बाती बुझी फफक-फफकर

अब न जलूँगा, चाहें गाओ दीपक राग

छोटा सा दीपक हूँ, कहते हैं घर का चिराग़

मुझसे ही जलती है, घर के उम्मीदों की आग

 

 

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com

2 thoughts on “छोटा सा दीपक

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मैं मिट्टी का दीपक हूँ

    बना आग में पककर

    जलकर बना, जलता रहा

    बुझ गया मैं थककर बडीया पन्क्तीआन .

    • नीतू सिंह

      धन्यवाद सर जी! आपके संस्मरण भी बहुत बढियां होते हैं। अब तक 40 ही पढ पाई हूँ। मगर आप ने तो सेंचुरी मार ली। इससे पता चलता है कि आपके पास यादों और अनुभवों की कितनी बड़ी संपत्ति है जो आप बांटते जा रहे हैं मगर कम नहीं हो रही।

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