कहानी

दिल के दरवाज़े

माघ के महीने की पंचमी को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. वसंत को सर्वश्रेष्ठ ऋतु और ऋतुराज माना गया है. इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं. प्रकृति को अनुपम सौन्दर्य प्रदान करने वाली इस ऋतु को इसीलिए ऋतुराज की संज्ञा दी गई है. मौसम का सुहाना होना इस मौके को और रूमानी बना देता है और ये संयोग ही है कि पाश्चात्य देशों में भी इसी वक्त 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे मनाया जाता है, जो अब भारतीय मानस पर भी छा गया है. ऐसे ही सुहाने मौसम में हमारी कहानी के नायक-नायिका के अंतर्मन ने दोस्ती की महक का लुत्फ़ लिया और फिर दोस्ती ने रूप लिया इश्क-प्रेम-मुहब्ब्त का. कहानी के नायक-नायिका का नाम है महक-वसंत.

उनके इश्क-प्रेम-मुहब्ब्त को लव मैरिज का रूप लेने में एक साल लग गया. उनके मन से पूछा जाय, तो यही एक साल उनके लिए सबसे सुहाना समय था. 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे पर वसंत ने महक को अपनी बनने का आमंत्रण दिया था, फिर उनका मिलना-जुलना शुरु हो गया था. दोनों के घर इस इश्क की आहट पहुंच चुकी थी. उनको भला इसमें क्या ऐतराज़ हो सकता था? दोनों अच्छे परिवार से थे, कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे, एक-दूसरे को जानते-पहचानते थे, सबसे बड़ी बात उनके मन मिले हुए थे. कैमरा वाले मोबाइल के रसीले-रंगीले समय में घरवालों ने उनके फोटोज़ भी देख लिए थे. जहां तक नज़र की परिधि थी, बस खुशियां-ही-खुशियां नज़र आती थीं.

फिर 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे आने को थी. इस दिन कुछ ख़ास होने की परंपरा-सी हो गई है. महक-वसंत के परिवारों ने इस लव मैरिज को जल्दी ही अरेंज मैरिज में परिवर्तित करने का विचार बनाया. वैलेंटाइन डे को सुबह ही दोनों परिवारों के मिलने का समय निश्चित हुआ. वैलेंटाइन वसंत सपरिवार अपनी वैलेंटाइन महक के घर सगाई की रस्म के लिए पहुंचा, अंगूठियों व मालाओं का आदान-प्रदान हुआ, उपहारों की औपचारिकता भी पूरी हुई, प्रीतिभोज के बाद महक-वसंत वैलेंटाइन डे मनाने निकल पड़े और वसंत का परिवार अपने निवासस्थान को चल पड़ा.

महक और वसंत तो अपनी दुनिया में और वैलेंटाइन डे की मस्ती में सराबोर थे, लेकिन वसंत के परिवार वालों के मन में अपने निवासस्थान पहुंचने से पहले ही एक नया विचार पनप चुका था. यों तो उन्होंने वसंत को शाम को महक को डिनर पर लाने का प्रोग्राम बनाया था, पर अब वे ही महक के घर न केवल डिनर के लिए, बल्कि महक को बाकायदा पुत्रवधू बनाकर लाने के लिए जाने वाले थे. महक के घर फोन पर बात करके इस योजना पर अमल होना भी शुरु हो गया था. महक के पिताश्री ने कैटरर को फोन पर मीनू बताकर घर को सजाना शुरु किया और माताश्री ब्यूटी पार्लर में बेटी को सजाने के लिए प्रबंध करने में जुट गई. वसंत के परिवार वालों ने महक और वसंत के शादी के जोड़े और ज़ेवरों का काम अपने जिम्मे लिया.

वसंत ने लंच के कुछ देर बाद अपनी माताश्री के मोबाइल पर सम्पर्क करके घर आने की बात कही, लेकिन जवाब ने उसको तनिक आश्चर्य चकित कर दिया. माताश्री ने फरमाया, कि वह महक को लेकर उसके घर जाए, सब लोग पुनः वहीं मिलेंगे. महक और वसंत बात को समझ नहीं पाए, पर माताश्री का हुक्म था, सो उस पर तुरंत अमल होना अनिवार्य ही था.

वे दोनों तुरंत महक के घर के लिए चल पड़े. यह क्या! महक अपने घर को ही नहीं पहचान पा रही थी. इन कुछ ही घंटों में घर का हुलिया मानो बदल ही गया था. शानदार शामियाना, शाही फर्नीचर और रंगबिरंगी लड़ियों का नज़ारा तो अलग, लेकिन उसका कारण उसके लिए पहेली बन गया था. घर में प्रवेश करते ही उसे मेंहदी लगाने वाली ब्यूटी पॉर्लर वाली नैना ने घेर लिया. उसी से पता चला, कि आज ही उसकी शादी होने वाली है. माताश्री ने उसको वहीं शादी का जोड़ा भी दिखा दिया, जो सबको बहुत पसंद आ गया था.

दूसरे कमरे में वसंत के घरवाले भी अपने शगुनों में व्यस्त हो गए थे. सांझ ढलते ही पंडित भी आ पहुंचे और उन्होंने जजमानों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए अधिक विस्तार न देते हुए, तुरंत विवाह संपन्न करवा दिया. चट मंगनी, पट ब्याह की इससे अच्छी मिसाल भला और क्या ही सकती है? दोनों परिवारों ने बड़ी-सी एक टेबिल पर वर-वधू के साथ प्रीतिभोज किया और वर-वधू को वैलेंटाइन नाइट मनाने के लिए भेज दिया गया. सब कुछ मानो एक स्वप्न-समान हो रहा था. वसंत के घरवाले विदा होकर चल दिए. उनका घर भी सजा हुआ था. उनके खुले विचारों की तरह उनके घर का मुख्य दरवाज़ा हमेशा की तरह खुला हुआ था, जिस तरह उनके दिल के दरवाज़े खुले हुए थे.

अब फिर वैलेंटाइन डे आने वाला है. डिलीवरी सिजेरियन से होनी थी. डॉक्टर ने महक की डिलीवरी का दिन भी 14 फरवरी बताया है. डॉक्टर की सलाह से वसंत ने महक की डिलीवरी का समय 14 तारीख को 14 बजकर 14 मिनट 14 सेकंड का निश्चित किया है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

7 thoughts on “दिल के दरवाज़े

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी !

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कहानी बहुत अच्छी लगी.

  • नीतू सिंह

    ह हा हा…….वैलेंटाइन डे पर इससे बढियां कहानी नहीं हो सकती

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी नीतू जी, हमें आपकी हंसी बहुत बढ़िया लगी.

      • लीला तिवानी

        प्रिय सखी नीतू जी, प्रतिक्रिया हो या रचना, आप बहुत अच्छा और दिल से लिखती हैं. आप संवाद भी स्थापित करती हैं, जो कि एक बहुत बड़ी विशेषता है.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह ! ऐसा वैलंटाइन डे तो हर एक की जिंदगी में होना चाहिए .ऐसी सोच भारत में आ जाए तो दंपति जीवन स्वर्ग्य नहीं हो जाए ?. यह कहानी, कहानी ना हो कर एक ऐसा सन्देश है जिस के बारे में लोगों को सोचना चाहिए .

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