कविता

वसंत

आजकल हिंदी साहित्य में बहार है वासंती और वसंत की,
क्योंकि मौसम ने भी दस्तक दी है सरस-सुहानी ऋतु वसंत की.
चारों ओर महक है, पीले-वासंती गेंदे और सरसों के फूलों की,
नदी-किनारे बैठकर वासंती आभा ही दिखती है नदी के कूलों की.
परदेस में भी कुछ नए रूप में आई हुई, सुहाने-से वसंत की बहार है,
भारत में सर्दी से गर्मी आने की और यहां गर्मी से सर्दी का निखार है
सैर पर जाते समय यहां, सफेद और बैंगनी फूलों की चादर बिछी होती है
भारत में पीले फूलों की मनोहारी झलक मन को मोहित कर रही होती है
बहार यहां भी है, वहां भी है, बस उसका रूप तनिक अलग-सा होता है
मन में हो मौज की तरंगें तो देस-परदेस में वसंत एक-सा ही प्रतीत होता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

5 thoughts on “वसंत

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता, बहिन जी !

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, शुक्रिया.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मैंने तो खेतों में आई इस बहार के नज़ारे देखे हैं .चारों तरफ हरिआली जिस में सरसों के खेत और उन में बसंती रंग के फूल ,बहार ही बहार !!!!!!!!!!!!!!!

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, नमने भी ऐसी बहार के दिलकश नज़ारे देखे हैं, अब हम परदेस में रह रहे हैं, तो जो नज़ारे परदेस में दिख रहे हैं, वे भी उल्लसित कर देते हैं.

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, हमने भी ऐसी बहार के दिलकश नज़ारे देखे हैं, अब हम परदेस में रह रहे हैं, तो जो नज़ारे परदेस में दिख रहे हैं, वे भी उल्लसित कर देते हैं.

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