कविता

तानों से थक जाते हैं

काम से हम नहीं थकते

तुम्हारे तानों से थक जाते हैं

काम तुम्हारा करके

यह कौन सा सुख पाते हैं

कि तुम्हारे तानों से थक जाते हैं

 

काम बहुत हो, शाम बहुत हो

हम कभी नहीं घबराते हैं

अंधेरे को टिकने नहीं देते

और उजाले ही सुहाते हैं

बस इक तुम्हारे तानों से थक जाते हैं

 

हौसलें बुलंद बहुत हैं

गर्म खून रगों में बहाते हैं

सब कुछ करते हैं, सबको हराते हैं

पर एक बात समझ नहीं पाते हैं

क्यूँ तुम्हारे तानों से थक जाते हैं

*****

 

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com

5 thoughts on “तानों से थक जाते हैं

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

    • नीतू सिंह

      dhanyavad

  • पर एक बात समझ नहीं पाते हैं

    क्यूँ तुम्हारे तानों से थक जाते हैं. हा हा ,यही तो भेद है .

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया सर जी। मगर अभी भी भेद खुला नहीं कि क्यों तानों से थक जाते हैं। ह हा हा

  • पर एक बात समझ नहीं पाते हैं

    क्यूँ तुम्हारे तानों से थक जाते हैं. हा हा ,यही तो भेद है .

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