कहानी

समझ

नवनीत ने बेडरूम में कदम रखा तो टी.वी. चल रहा था और सचिन पर कोई विशेष कार्यक्रम दिखाया जा रहा था मगर प्रमीला एकदम ध्यान मग्न होकर गोद में पड़े राहुल को बोतल से दूध पिला रही थी जिसे उसने नन्ही उंगलियों से पकड़ रखा था।

नवनीत ने रिटार्यड हर्ट बल्लेबाज़ की तरह बिस्तर पर बैठते हुए कहा “बहुत दिन हुए मीरा, तुम्हारे हाथ की करंजी नहीं खाई। याद है, शादी के बाद शुरु-शुरु के दिनों में तुम क्या-क्या नहीं बनाती थी।“

प्रमीला ने एक तिरछी निगाह से करंजी के सपने में खोए नवनीत को ऐसे देखा जैसे युवराज से छ्ह छक्के पिटवाने के बाद स्टुआर्ट ब्रॉड ने देखा और फिर वापस बोतल पर ध्यान केन्द्रित कर लिया।

कोई उत्तर न पाकर नवनीत स्वाद के गलियारे से बाहर आ गया और प्रमीला की ओर देख उपेक्षा का कारण ढूँढने लगा जैसे सारे फील्डरों के ऑन साइड खड़े होने के कारण कोई बल्लेबाज़ आउटफील्ड में गेंद खिसकाने की जगह तलाश रहा हो|

“इसे छोड़ क्यों नहीं देती। उसके हाथ में थमा दो। खुद ही पी लेगा।“

प्रमीला ने नवनीत की आँखों में आँखें धसाकर कहा जैसे किसी गेंदबाज़ की जोरदार अपील खारिज़ होने के बाद कोई  बल्लेबाज़ कहे “अच्छा! तो ज़रा एक बार पिलाकर देखो। दो घूँट अपने आप पी ले तो मान जाऊँ।“

अंततः सारी दिशाओं में बल्ला चलाकर कोई बल्लेबाज़ थक जाए और बाउंडरी भेद पाने का कोई रास्ता न पाकर वापस केवल गेंद को टुक-टुक करने में ही जैसे अपनी भलाई समझे वैसे ही बोल नवनीत के मुख से निकले –  ”ओफ्फो मैं तो करंजी बनाने की बात कर रहा था। तुम एक दिन करंजी क्यों नहीं बनाती?“

प्रमीला ने किसी कप्तान द्वारा नए बल्लेबाज़ से मनचाहा परिणाम न पाकर पुराने बल्लेबाज़ को वापस बुलाने जैसी मुद्रा में वापस ध्यान बोतल पर केन्द्रित करते हुए कहा “मेरे पास अब इतना वक्त कहाँ रह गया है?”

नवनीत ने वापस तकिये की टेक लेते हुए ऐसे कहा जैसे गलत एलबीडब्ल्यू देने के बाद भी अ शोकर (a shocker) याने अशोका डी सिल्वा अपनी एम्पाएरिंग पर टिका हो ”क्यों नहीं? आख़िर तुम दिनभर करती क्या हो?”

प्रमीला ने लाल नेत्रों से नवनीत को ऐसे देखा जैसे हरभजन ने सिमोण्ड्स पर कोई जातिवादी फिकरा कसा हो। मगर नवनीत इस कटाक्ष के बाद बिस्तर पर और फैल कर लेट गया जैसे उससे फील्ड के उस कोने में खड़ा किया गया हो जहां बॉल कम आती हो और दर्शकों की शुभकामनाएँ ज़्यादा। वह फिर बोतल को देखने लगी।

कुछेक क्षणों का ड्रिंक्स विराम देकर प्रमीला ने दाँत कटकटाते हुए किसी गेंदबाज़ की तरह एक सवाल नवनीत की ओर उछाल दिया – “अनारकली सूटों की सिलाई बहुत खुलती है। मेरी सिलाई मशीन ठीक कराई?”

किसी ऐसे मैच का आख़िरी ओवर चल रहा हो जिसमें छह छक्के मार के भी मैच जीता न जा सकता हो तो गेंदबाज़ जिस इत्मीनान से बॉल डालता है उसी इत्मीनान से नवनीत ने जवाब दिया ”अरे यार! दफ़तर में इतना काम होता है कि क्या बताऊँ? एक बार आफिस पहुँच जाता हूँ तो बाहर की दुनिया का ख्याल ही नहीं रहता। कुछ भी याद नहीं रहता।“

प्रमीला ने दूध के गिरते स्तर को आँखों से जाँचते हुए ऐसे बल्लेबाज़ी की जैसे छक्का लगाने के लिए इसी स्पिन बॉल का इंतज़ार कर रही हो – “आख़िर आप ऑफिस में करते क्या हो?”

नवनीत ने प्रमीला की ओर ऐसे विस्फारित नेत्रों से देखा जैसे कोई मशहूर गेंदबाज़ उस बल्लेबाज़ की ओर देखता है जो अबतक गेंदबाज़ी के लिए जाना जाता था मगर आज उसकी पहली ही गेंद पर छक्का पीट गया हो। “तुम ऐसा कैसे कह सकती हो? राहुल के होने से पहले तुम भी तो ऑफिस जाती थी। तुम तो जानती हो कि ऑफिस में कितने काम होते हैं। बॉस का प्रैशर, डेडलाइन्स पूरी करना, उफ्फ तक करने की फुरसत नहीं मिलती।“

इतने में राहुल दूध की बोतल तक अपना पैर पहुंचाने में सफल हो गया और इसका फायदा उठाकर उसने बोतल को एक ज़ोरदार लात मारकर नीचे गिरा दिया जैसे कोई नया बल्लेबाज़ जो अबतक केवल अंडर नाइंटीन में खेलता आया है अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में मौका पाते ही पहली ही गेंद पर ज़ोर लगाकर छक्का मार दे।

बोतल को उठाते हुए प्रमीला टेस्ट मैच की वो आख़िरी इनिंग खेलती है जिस से किसी की हार-जीत तय नहीं होती – “ ट्रेडीशनल पतियों वाले डायलोग दोगे तो ट्रेडीशनल बीवियों वाले जवाब पाओगे। तुम बीवी की परिस्थिति समझो वो तुम्हारी समझेगी।“

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com

6 thoughts on “समझ

  • विजय कुमार सिंघल

    रोचक कहानी ! इससे आपके क्रिकेट ज्ञान का भी पता चलता है। वैसे करंजी क्या होती है? राजस्थान के नमकीन पानी वाले पकौड़े तो नहीं?

    • नीतू सिंह

      नहीं सर यह महाराष्ट्र का मिष्ठान है जो गुझिया की तरह होता है जिसमें खोवे की जगह नारियल होता है।

  • कहानी में ही क्रिकट का मज़ा ले लिया ,मीरा परमिला कोई भी हो लेकिन मुझे करंजी के बारे में कुछ जानकारी मिल जाए तो आभारी हूँगा ,कैसे बनाई जाती है ,धन्यवादी हूँगा .

    • नीतू सिंह

      सर! उत्तर भारत में जो गुज़िआ है वह महाराष्ट्र में करंजी हो जाती है जिसमें खोवे की जगह नारियल ज्यादा होता है।

  • नीतू सिंह

    धन्यवाद लीला जी कि आपने चरित्रों के नाम में की गई मेरी त्रुटि को पकड़ा नहीं तो मेरे ध्यान में ही नहीं आता। क्रिकेट शौक बहुत पहले छूट गया। फिर किसी कहानी में गृहस्थी जोड़ने का प्रयास अवश्य करूँगी। इसमें तो उपेक्षित गृहणी के स्वर ही उद्वेलित रहेंगे।

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी नीतू जी, आपके क्रिकेट-ज्ञान ने चमत्कृत कर दिया. शुरु में ही प्रमीला, मीरा कैसे बन गई, आपने स्पष्ट नहीं किया. हमारे विचार से आखिरी वाक्य गृहस्थी जोड़ने वाला होता, तो अच्छा रहता. शुक्रिया.

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