गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आप को देखे जमाना हो गया
प्यार शायद अब पुराना हो गया

मुस्कुरा कर आप ने देखा सनम
बस जमाने में फशाना हो गया

दर्द आँसू और ये तन्हा सफर
रोज का मेरा बहाना हो गया ।

जुल्फ चहरे पर गिरी उनके अगर
दिल मिरा उनका दीवाना हो गया

धर्म उनको है कदर तेरी नही
गैर के दिल में ठिकाना हो गया ।

— धर्म पाण्डेय

3 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

  • ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .

  • ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .

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