सृजन प्रबंधन (Creativity Management)
सृजन प्रकृति का नियम है। पृथ्वी पर जन्मा हर शिशु विधाता का सृजन है एवं एक विश्वास है कि ईश्वर अभी भी मनुष्य से निराश नहीं हुआ है। हर व्यक्ति में सृजनशीलता के गुण होते हैं। मात्र कहानी, कविता, उपन्यास लिखने वाला या पेंटिंग चित्र बनाने वाले व्यक्ति ही नहीं, हर इन्सान में सृजनता होती है। सृजन का अर्थ है नई-नई चीजें सोचकर उन्हें उचित आकार देना। यथा, एक चित्रकार चित्र बनाता है, एक कवि कविता लिखता है, एक नाटककार नाटक लिखता है, एक छोटी बच्ची जीवन में पहली रोटी बनाती है। प्रतिभा जन्मजात होती है एवं प्रशिक्षण इत्यादि से भी प्रतिभा विकसित की जा सकती है, संवारी जा सकती है।
आइए, सृजन पर कुछ मंथन करें।
परिवार, समाज, संस्थान के हर व्यक्ति में सृजनता होती है। परन्तु बच्चों को डांट कर चुप करा दिया जाता है, कर्मचारी को लगता है कि अधिकारी ही सही है, जीवनसाथी को मूर्ख समझा जाता है, ऐसे में प्रतिभा कुंठित हो कर रह जाती है। संस्थान के कर्मचारी के पास कम समय में अच्छा काम करने के कई विचार होते हैं। नई पीढ़ी के पास नए विचार होते हैं। अनुभवी व्यक्ति के जीवन भर के अनुभव होते हैं। संस्थान में एक सुझाव पेटिका होनी चाहिए, जिसमें कर्मचारी लिखित में अपने विचार प्रकट कर सकें, परिवार में समस्या के समाधान हेतु बहू या काॅलेज में पढ़ने वाले बेटे-बेटी से भी विचार आमंचित कर मंथन कर सार्थक समाधान निकालने का प्रयास किया जाना चाहिए। परिवत्र्तनशील संसार में सृजनता के विचार हमें प्रतिस्पर्धा हेतु अनिवार्य हैं, जिन्हें नकारा नहीं जा सकता। ध्यान, प्राणायाम से सृजनशक्ति में वृद्धि की जा सकती है। प्रशिक्षण, सत्संग, अच्छी पुस्तकों का अध्ययन। विद्धानों से वात्र्ता इत्यादि कई माध्यमों द्वारा सृजनता के गुणों का विकास किया जा सकता है। पहेली सुलझाना, आखें बन्द कर मौन रह कर चिन्तन करना, डायरी लिखना इत्यादि कई ऐसे नुस्खे हैं, जिनसे व्यक्ति अपनी कल्पनाशीलता एवं सृजनशक्ति बढ़ा सकता है। सृजनता प्रकृति का मनुष्य को विलक्षण उपहार है।
सृजन हेतु विचारों को लिखते चलिए, बाद में इन विचारों पर चिन्तन कर सकते हैं, एक गृहिणी नई रेसिपी/डिश हेतु सामग्री एवं विधि एक कागज पर लिख सकती है, एक लेखिका नए विषयों की सूची बना सकती है, एक गृहिणी रसोई गैस, बिजली, पानी की बचत हेतु उपाय लिख सकती है, अंग्रेजी सुधारने हेतु प्रतिदिन एक नए विषय एक पृष्ठ लिखने हेतु सूची बनाई जा सकती है, उत्पादकता में वृद्धि हेतु सुझाव, दुर्घटनाऐं कम करने हेतु उपाय, रोगी को निरोग हेतु नए सुझाव, सब कुछ सृजनता की परिभाषा में आता है। लिखने के पश्चात् स्वयं या मिल-जुल कर या मीटिंग में इन पर मंथन कर उपयोगी विचारों एवं सुझावों को कार्याविन्त करने की योजना बनाई जा सकती है।
सृजनता से वातावरण में सुख, शांति, संतोष की शीतल वायु चलती है। सृजनता को दबाने से कई समस्याएं व परेशानियां पैदा हो सकती हैं। बच्ची की ड्राइंग में रूचि है, पर मम्मी पापा उसे इंजीनियर ही बनाना चाहते हैं। ऐसे वातावरण में घुटन, तनाव, कलेश की गर्म हवा चलती है। सृजनता को विकसित करने का अवसर देना आवश्यक है, परिवार में हो या संस्थान में, अधिकांशत बड़ों को यह अहं घमंड अभिमान होता है कि वे ही सब कुछ जानते हैं एवं छोटों को मुंह बन्द रखने की नसीहत देते हैं। यह नकारात्मकता परिवार व संस्थान के लिए हितकारी नहीं होती, इसलिए सृजनता को उचित वातावरण संसाधन व मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए ताकि परिवार में खुशनुमा वातावरण रहे एवं संस्थान में उत्पादकता बढ़े।
प्रकृति को निहारिए। फूल खिलता है, सूर्योदय होता है, चन्द्रोदय होता है, नदी बहती है, एक दो बारिश में ही पहाड़ियां हरी हो जाती हैं। पूर्णमासी पर चन्द्रमा सम्पूर्णता में रहता है, गर्मी की रात में शीतल मन्द हवा, बारिश से तपन की मुक्ति, मिट्टी की सोंधी, गन्ध सब कुछ प्रकृति कि निरन्तर सृजनशीलता के शाश्वत उदाहरण हैं। मन से, समर्पण से किया गया काम सृजन ही होता है। अनेक पुस्तकें अलमारी में धूल खाती हैं। एक रचना लेखक को अमर कर देती है। स्वादिष्ट सुस्वादु सब्जी गृहिणी की सृजनता का ही परिणाम होती है।
आइए सृजन कीजिए, किसी भी क्षेत्र में, हार मत मानिए, विचारों को कार्यान्वित कीजिए। सृजनता से आत्मसंतुष्टि के मीठे फल मिलेंगे।
जीवनोपयोगी लेख के लिए आभार.
बहुत उपयोगी लेख !