कहानी

कहानी : मुआवज़ा

“अरे भाई भोलानाथ कँहा चल दिए इतनी जल्दी में ?” नत्थू ने एक हाथ में रोटी का टिफन दूसरे हाथ में लाठी लिए तेजी से जाते हुए भोलाराम से पूछा ।

” राम राम नत्थू भाई …. बस खेतो की तरफ जा रहा हूँ .रात में रखवाली करनी पड़ती है न जानवरो से , आप तो जानते ही हैं कितनी फसल ख़राब कर देते है ससुरे ” भोलाराम ने ठिठक के रुकते हुए कहा ।

“हाँ! जानता हूँ भोलानाथ!…खूब जानता हूँ , इतनी उम्र ऐसे ही नहीं हो गई किसानी करते करते … बाप दादाओं के खेत है. इन्ही खेतों में पल के हमारे बाप दादा और हम बड़े हुए हैं और हमारे बच्चे भी इन्ही खेतो में पल के बड़े हुए ” नत्थू ने एक ठंडी में सब कुछ कहता चला गया ।

” ये सही कह रहे हो नत्थू भाई, हम सब इन्ही खेतो में खेल के बड़े हुए हैं … इस मिटटी कितना लगाव है हमें , अरे! बेशक खेत कम ही है पर गुजारे लायक बहुत है … ये खेत हमारी माँ है नत्थू भाई” भोलानाथ ने गहरे लब्ज़ों में कहा ।

अब बात नत्थू ने आगे बढ़ाई “बात बिलकुल ठीक ही कह रहे हो भोलानाथ …पर सुना है की सरकार कौनो टाउनशिप और कारख़ाने लगाने की योजना बना रही है इस जिले में ,हाइवे के पास है न हमारा गाँव तो हमारे और बहुत से गाँवों के किसानो की खेत जो हाइवे से लगते हैं उन्हें सरकार खरीद लेगी … खरीद के कारख़ाने और इमारते बना के बेचेगी ” एक दुःख और चिंता की परछाई लिए नत्थू ने अपनी बात ख़त्म की ।

” हाँ भैय्या, सुना तो मैंने भी है ये पिछले हफ्ते सरपंच जी बता रहे थे की हम सबकी जमीन सरकार कब्ज़ा लेगी और बदले में मुआवजा देगी ” भोलानाथ ने कहा ” यही बात है,सरपंच जी ने कहा है की जल्दी ही सबके घर नोटिस आएगा … हमें अपने खेत सरकार को बेचने ही पड़ेंगे चाहे किसी के कम हो या ज्यादा ” नत्थू ने कहा

इतना सुन भोलानाथ रुआंसा सा हो गया, भरे मन और उदास कदमो से वह खेतो की तरफ चल दिया।

कुछ महीने बीते की सरकार ने ज़मीने अदिग्रहण कर लीं, जमीनों के बदले अच्छा खासा मुआवजा मिला ।जिन किसानो के घर कभी अन्न पूरा नहीं होता था उनके घरो में शराब की नदियां बह रही थीं । जो किसान कभी भैंसा बुग्गी के आलावा शायद ही कभी किसी गाडी पर बैठे हों आज उनके घरो के आगे लग्जरी गाडियाँ खड़ी थीं ।

भोलानाथ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ,उसके दोनों बेटो ने मुआवजे की रकम हड़प ली और पूरी ऐश ले रहे थें। जो कुछ थोडा बहुत बचा वह भोलानाथ ने अपनी बेटी की शादी में खर्च कर दिए , लड़के वालो को भी मुआवजे की रकम मिली हुई थी और वे भी ‘ अमीर’ हो गए थे अत: भोलानाथ को अपनी बचे हुए मुआवज़े के पैसो से अच्छी खासी खर्चीली शादी करनी पड़ी ।

कुछ दिनों बाद भोलानाथ फिर उसी स्थिति में आ गया था जैसा की किसानी में था ,दोनों बेटो ने जो पैसा हड़प लिया था उससे अभी भी बिना काम किये ऐश कर रहे थे ।भोलानाथ को बेटो की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही थी अत: उसने खेत बेचते समय जो अनुबंध हुआ था की एक व्यक्ति को नौकरी मिलेगी उस अनुबंध के तहत नौकरी कर ली । चुकी भोलानाथ पढ़ा लिखा नहीं था अत: उसे रात की चौकीदारी का काम मिला ।

इस बिल्डिंग में चौकीदारी करने की नौकरी लगी वह बिल्डिंग उसी के खेत में बनी थी ।भोलानाथ अब भी रखवाली ही कर रहा था , हाँ बस वंहा फ़सलों की यंहा बिल्डिंग की … यंहा आंसुओं के साथ अपने खेतों को याद कर रातें काटता ।

– केशव

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

One thought on “कहानी : मुआवज़ा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी !

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