बाल कविता

बाल गीत : बचालो जंगल तरु उद्यान

चलाना एक सफल अभियान,
बचा लेना पेड़ों के प्राण ।

दिनों दिन कटते जाते पेड़ ,
सूखती जाती हरियाली।
नदी वर्षा में भरती है,
शीत में हो जाती खाली।

पेड़ कट जाते रातों रात,
खबर होती न कानों कान।

धूप में छाया देते हैं,
मुसाफिर ठंडक पा जाते।
गगन में उड़ते जो पंछी,
आसरा पाकर टिक जाते।

पेड़ होते मन्दिर के देव,
पेड़ हैं गीता और कुरान।

पेड़ देते हैं मीठे फल,
काम पत्ते भी आते हैं।
दवाएं हैं इनमें भरपूर ,
हमारे प्राण बचाते हैं।

बढ़ा जो हाथ बचाले पेड़,
वही होगा सच्चा इंसान।

भरा जो प्राण तत्व इसमें,
हमें वह जीवन देता है।
हमारी निसृत विष वायु,
पेड़ भीतर भर लेता है।

बचाना है यदि अपनी जान,
बचालो जंगल तरु उद्यान।

धरा पर हरे भरे झुरमुट,
ह्रदय को प्यारे लगते हैं।
थकावट हो जाती है दूर,
व्यथा चिंता को हरते हैं।

इन्हें पालो बच्चों जैसा,
तुम्हारी ही तो ये संतान।

प्रभुदयाल श्रीवास्तव 

*प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव वरिष्ठ साहित्यकार् 12 शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र 480001

2 thoughts on “बाल गीत : बचालो जंगल तरु उद्यान

  • लीला तिवानी

    प्रिय प्रभुदयाल भाई जी, अति सुंदर कविता के लिए आभार.

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

    आदरणीय प्रभुलाल श्रीवास्तव आप ने बहुत सुन्दर कविता लिखी है. बधाई.

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