गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपना दामन जब सी लेंगे कल को हम,
तेरे  आँसू   भी  पोछेंगे   कल  को  हम।

माज़ी  से   कुछ   पूछेंगे,   कुछ  सोचेंगे,
वाजिब पाया तो दिल देंगे कल को हम।

पीछे  रह  जाते  हैं   जो  यह  कहते  हैं,
कल  के  बारे  में  सोचेंगे  कल  को हम।

साक़ी,  कल के  इम्काँ  पर खुश होने दे,
कल की शिद्दत पर रो लेंगे कल को हम।

कल किसने देखा है,  कब आता है कल,
मुझसे कहते हैं,  “आएँगे  कल को हम”।

पहले  अपने  कल  को  तो  गढ़  लेने दो,
फुरसत  पायी तो  बदलेंगे  कल को हम।

…….’होश’

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

2 thoughts on “ग़ज़ल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    साक़ी, कल के इम्काँ पर खुश होने दे,

    कल की शिद्दत पर रो लेंगे कल को हम। वाह वाह ,मनोज जी ,क्या बात है .

    • मनोज पाण्डेय 'होश'

      शुक्रिया

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