मुक्तक
पनपते रोज बेमौसम सियासत के दरिंदे हैं शज़र को लूट जाते वो किए बेघर परिंदे हैं कुदूरत को निभाते हैं
Read Moreकुछ अश्क छिपा रखे थे हमने अपने दामन में । हमारे अपनों ने उनको महफिले आम कर दिया । जिन्दगी
Read Moreइस दिल में कुछ टूटा है शायद कोई अपना छूटा है । सजल हुई हैं आंखे मेरी इनसे अश्रु झरना
Read Moreमिले राहे इश्क मे जो हमराही हमें । उनकी नजरों मे इश्क आज भी है । देखकर उनको जाने क्यों
Read Moreअब के आबे जब होली पिया ऐसो रंग लगइयों पिया तन मन भीजो दियो प्रीत के रंग में डूबो दियो
Read Moreविचारों का द्वन्द तो सनातन सत्य है मगर जिस भूमि में लिया है जन्म पले – बढ़े हो जिसके अन्न
Read More