गीत/नवगीत

गीत : क्यों पूज्य नारी हो

इससे बड़ी नहीं कोई संतुष्टि अभिमान की
नारी रहे बन्धनीय, मात्र अबला बेचारी हो
चरित्र का प्रमाण जब राम ही ने मांग लिया
कलयुग में मनुओं को, क्योँ पूज्य नारी हो

स्वयं जिसने जना है सारे सभ्य समाज को
कल भी थी पीड़ित है कोसती वो आज को
मर्यादा का मान जब भीष्म ही ना कर सके
कोई द्रोपदी कैसे इस युग में वस्त्र धारी हो
कलयुग में मनुओं को, क्योँ पूज्य नारी हो

मनु की मनोदशा तो सदा से विक्षिप्त रही
बदले हैं युग कई पर सोच ही भ्रमित रही
नारी का मान जब देवेन्द्र ही ना कर सके
पाप की भोगी क्योँ ना अहिल्या बेचारी हो
कलयुग में मनुओं को, क्योँ पूज्य नारी हो

— गंगा गैड़ा