सामाजिक

2016-17 के लिये कर नीति, बैक और हम

जैतली जी ने छोटी आय वालों को कर में कोई भी छूट नहीं दी है। जो sec.87 में ₹3000/- की छूट बढ़ाई है वो अत्यंत भ्रामक है। एक हाथ से उन्होने जो 3000/- की छूट दी, तो दूसरे हाथ से सेवा कर में वृद्धि कर के और किसान विकास कर आदि लगा कर उससे ज्यादा ही वसूल लिया है। इसे कहते हैं जादूगर अरुण जैतली की हाथ की सफाई।

आइये देखते हैं इस बजट का एक आम आदमी के बजट पर क्या असर पड़ेगा।

मान लीजिये कि राम भरोसे का वेतन ₹25000/- प्रति माह है। देखा जाय तो हमारे देश में मध्य वर्ग की औसत मासिक आय यही कुछ है जैसा कि एक इकोनॉमिक सर्वे में दर्शाया भी गया है। यह आदमी भारत विशाल का एक जागरूक नागरिक है। इसकी एक बीवी और दो स्कूल जाने वाले बच्चे हैं। अर्थात, एक आदर्श परिवार है।

जैसे सामान बेचने वाली कंपनियाँ अपनी बिक्री बढ़ाने के लिये अश्लील आकर्षण हवा में टाँगती रहती हैं,  जैसे, एक के साथ एक फ्री, हौन्डा कार जीतिये, एक किलो सोना जीतिये, आदि, आदि, उसी प्रकार आयकर विभाग भी आपको फँसाने के लिये, कर बचाने के प्रलोभनों का जाल फैला कर रखता है। कर मुक्त रकम का हिस्सा बढ़ाने के लिये आप इस मद में ये बचा लें, आप उस मद में मकान ऋण पर दिये जा रहे ब्याज में छूट पायें, आदि, आदि। आप बचत करते हैं तो बैंक को ऋण देने के लिये रकम जुटती है जो, अंततोगत्वः उन बड़े उद्योगपतियों के काम आती है जो लेना तो जानते हैं पर वापस करना नहीं जानते। ऐसा न होता तो अनर्जित आस्तियोँ (डूबता ऋण) की स्थिति जो है वो न होती। देय कर में बचत करने से आपकी खर्च करने की माद्दा बढ़ती है। इस प्रकार एक संतुलित कर नीति बनती है।

तो हमारा राम भरोसे भी बचत के छलावे में आ जाता है और कर बचाने की सोचता है। यह इसलिये है क्योंकि हमारे देश में हर जिम्मेदारी खुद के प्रति होती है, और किसी के प्रति नहीं। अब, क्योंकि जैतली जी रूपी बादल, पिछले दो साल के मानसून की तरह, नहीं पसीजे तो देखें कि राम भरोसे जी, मौजूदा कर नियमों के अंतरगत, इस साल अपनी आयकर जिम्मेदारी कैसे निभाते हैं और अगले साल क्या करते हैं ।

कुल वार्षिक आय – 25000×12=300000/-
कर मुक्त आय       – 250000/-
कर युक्त राशि       – 50000/-
10% के हिसाब से कर -5000/-(अन्य कर छोड़ कर)
शुद्ध आय|           – 295000/-
अर्थात ₹416/- प्रति माह का बेसूद खर्च। महीने का अखबार और फल गया। हाँ, जैतली जी की नज़र में अगर ये लक्ज़री आइटम हैं तो बात अलग है।

यदि राम भरोसे बचत के मकड़ जाल में यह सोच कर फँसते हैं कि यह बचत तो गाढ़े वक्त अपने ही काम अाएगी, तो क्या स्थिति बनेगी !

कुल आय| – 25000×12=300000/-
बचत जो पाँच साल से पहले नहीं निकल सकती
      -50000/-
शुद्ध आय  – 300000-50000=250000/-
मतलब ₹20800/- प्रति माह।

अगले साल आय बढ़ने के साथ या तो अदा टैक्स या बचत की रकम ही बढ़ेगी, खर्च करने का माद्दा नहीं ।

अपने अनुभव से हम यह तो जानते ही हैं कि ₹25000/- में एक परिवार को कितनी सहूलियतें मिल पाती है, कितना अपनी बेल्ट को कसना पड़ता है और कहाँ कहाँ मन मारना पड़ेगा। इस पर, यदि यही रकम 4000/- से घटा दी जाय तो, आप स्वयं राम भरोसे की परेशानियों का अंदाज़ लगा सकते हैं। राम भरोसे को जैतली साहब ने राम भरोसे टाल कर ही, लगता है, सारी गणनाएँ की हैं।

मौजूदा आर्थिक हालात में दर हकीकत हर तरह के मांग की ज़बरदस्त कमी है। इसी कमी के चलते, उपभोग कम है जिसके कारण उद्यमी की लाभप्रदता प्रभावित हुई है। इसका असर बैंको की समय बद्ध ऋण वसूली पर पड़ रहा है जो आगे चलकर अनर्जित आस्तियों को बढ़ा रहा है। सरकार और उसके हिमायती  अक्सर इन अनर्जित आस्तियों का ठीकरा पिछली सरकार के मत्थे फोड़ रहे हैं। हकीकत इससे अलग है। सावधि ऋण ३ माह में और नकद उधार ४५ दिनों में अनर्जित हो जाता है यदि इसमें कुछ जमा नहीं होता और भाजपा सरकार को दो साल होने जा रहे हैं। इस कड़ी में बैंक के अधिकारी गण भी नहीं बख़्शे गये, एक तरफ से सब बेईमान करार कर दिये गये।

पूर्व की तरह, इस बार भी बचत को ही प्रोत्साहन है, खर्च को नहीं। जब बाज़ार में पूँजी की मांग नहीं हो तो बचत से बैंको पर देय ब्याज का अतिरिक्त भार पैदा हो जाता है। उधर अनर्जित आस्तियाँ कमाने नहीं दे रही हैं, तो बैंक डूबेंगे ही। मौजूदा बजट इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर रखता तो है पर इससे बाज़ार में मांग बढ़ेगी, यह संशय का मामला है। मेरे हिसाब से बजट में बाज़ार में मांग बढ़ाने और पैसा लाने की कोई भी कोशिश नज़र नहीं आती, और इस के बिना, न तो आर्थिक सुस्ती दूर होगी, न ही बैंको की सेहत सुधरेगी।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “2016-17 के लिये कर नीति, बैक और हम

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख !

Comments are closed.