कविता

कविता : बदलाव

पहले जैसा कुछ भी नहीं अब
देखो कितना बदलाव है,
देखो इंसान बदल रहा अब बदल रहा संसार है,
देखो इंसान बदल रहा अब बदल रहा संसार है ।

भाइयो में लाड नही अब,न बहिनो में प्यार है
बची हुयी बस माँ की ममता,बापू का दुलार है,
गैरो में  है सबकी सांसे,टूट रहे परिवार है,
देखो इंसान बदल रहा अब बदल रहा संसार है ।

छीन रहे है छल से देखो,झूटों की भरमार है,
बाजारों में हो रही मिलावट,कैसा अब व्यापार है,
बोझ उठाते बूढ़े कंधे,सुनते बच्चों की फटकार है,
नौजवाँ हो गया कामचोर अब,न मेहनत उन्हें स्वीकार है,

गरीब सो रहे भूखे देखो,न कोई रोटी का जुगाड़ है,
कही तरसते नैना देखो,नयनो की जलधार है,
राजनीति का खेल निराला,खेल ये चक्करदार है,
राजनीति ने ठग ली दुनिया,आरक्षण आधार है,
देखो इंसान बदल रहा अब बदल रहा संसार है,
देखो इंसान बदल रहा अब बदल रहा संसार है,

— नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”

नवीन श्रोत्रिय 'उत्कर्ष'

नवीन श्रोत्रिय "उत्कर्ष" श्रोत्रिय निवास,भगवती कॉलोनी बयाना (भरतपुर) राजस्थान पिनकोड - 321401 +91 84 4008-4006​ +91 95 4989-9145