कविता

कविता : आत्महत्या

कुछ तो होगा उस पार
जो खींचता होगा..
सोचा होगा तुमने
शायद वहां
दिल के फफोले न टीसते होंगे
न सांसों का शोर डराता होगा
न आँसुओं से खारा समन्दर
न ख्वाबों सा चटखता आसमान होता होगा
न रेतीले जिस्म
क्रॉसवर्ड पहेली सी ज़िन्दगी भी नहीं होगी
न भुरभुरा गिरते दिन
न लिबलिबी काई पर फिसलती रातें होंगी
न कैद में ख्वाहिशों की
हथेली की लकीरों के दरख़्त मुरझाते होंगे
न सासों का अर्थ बोझ
न रिश्तों का मायने फ़ासला होता होगा..
पर रुको ज़रा
ये गर्दन पर आस का फंदा बाँध
उस पार की छलाँग
की जो तैयारी की है न..
सुनो दोस्त
वो चमकती सतह जो लुभा रही है
वैतरिणी की नहीं
न मणिकर्णिका की
न मृत्यु न जीवन न मुक्ति
वो तो आभासी प्रतिबिम्ब दिखाते
इसी दर्पण की है ..
सोच लो!

डॉ छवि निगम