संस्मरण

इंसानियत

रोज़ सुबह मैं अपनी तीन पड़ोसिनों के साथ सैर करती थी. तबियत नासाज़ होने के कारण एक बार मुझे कुछ दिन आई.सी.यू. में रहना पड़ा और मैं दो महीने सैर पर नहीं गई. तीनों ने मेरी तबियत का सुन लिया था, लेकिन कोई सुध नहीं ली. एक दिन मैंने बहुत मुश्किल से थोड़ी-सी सैर धीरे-धीरे करने के लिए घरवालों को मनाया. तीनों तेज़-तेज़ सैर करती हुई मिलीं और बिना रुके सरसरी तौर से तबियत पूछती हुई आगे बढ़ गईं. पीछे से सामने वाली कॉलोनी की दो सखियां आ रही थीं, बाद में उनका नाम पता चला, बिमला और शीला. उनको मेरे बारे में सब पता था, क्योंकि मैं भजन-पार्टी में सबसे आगे होती थी और उनकी कॉलोनी में भी जाया करती थी. उन्होंने रुककर मेरा हाल पूछा और मुझे अपने बीच में करके हाथ पकड़कर सैर करवाकर घर छोड़ गईं. अगले दिन वे मुझे सैर करवाने के लिए घर से ले गईं और सैर करवाकर घर छोड़ गईं. धीरे-धीरे मैं फिर तेज़ चाल से चलने लग गई, फिर पहली वाली तीनों सैर पर मुझसे भजन व कहानियां सुनने के लिए साथ आने की चिरौरी करने लगीं, लेकिन मैं जब तक उस कॉलोनी में रही बिमला और शीला ही मेरी सैर और दुःख-सुख की साथी रहीं. उनकी इंसानियत को कोटिशः सलाम.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

8 thoughts on “इंसानियत

  • Man Mohan Kumar Arya

    Munde munde matirbhnna arthat logo ki mati alag alag hoti hai. Pahli teen bahno ki mati alag prakar ki thee aur baad wali bahno ki alag. Baad wali sakhiyon ka vyavhar dharm sammat tha aur pahli walion ka swarthparak. Manu ji ne kaha hai ki dushron ke saath wahi vyavhar karo Jo tum dushron se apne liye chahte ho. Apki bemari ne apko apki sakhiyon ki asliyat samne laa Dee. Sadar.

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. मुश्किल में ही असली-नकली का पता चलता है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

    • लीला तिवानी

      प्रिय मनमोहन भाई जी, आपकी सटीक व सार्थक प्रतिक्रियाएं हमें बहुत कुछ सिखाती हैं. आजकल सम्भवतः आपके हिंदी फॉन्ट्स नहीं चल रहे हैं, इसलिए हम आपके मधुर आलेखों का रसास्वादन नहीं कर पा रहे हैं. आपके सार्थक प्रतिक्रियाएं ही हमारा संबल बन रही हैं.

  • लीला बहन , हर इंसान एक दुसरे से भिन्न है, बात तो तब ही बनती है जब आप जैसा कोई साथी मिल जाए जो दिल का कोमल हो .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. बात तो तब ही बनती है जब आप जैसा कोई साथी मिल जाए जो दिल का नेक और कोमल हो. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी विभा जी, सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    इंसानियत को कोटिशः सलाम

    • लीला तिवानी

      प्रिय सखी विभा जी, सार्थक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.

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